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देखो गोपालजू की लीला ठाटी

dekho gopalju ki lila thati

परमानंद दास

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परमानंद दास

देखो गोपालजू की लीला ठाटी

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    देखो गोपालजू की लीला ठाटी।

    सुर ब्रह्मादक अचरज है जसुमति हाथ लिये रजु सांटी॥

    ये सब ग्वाल प्रकट कहत हैं स्याम मनोहर खाई मांटी।

    बदन उधारि भीतर देख्यो त्रिभुवन रूप वैराटी॥

    केशव के गुन वेद बखाने सेष सहस मुखसाटी लाटी।

    लख्यो जाय अंत अंतरगति बुधि प्रवेस कठिन यह घाटी॥

    जनम करम गुन स्याम के बखानत समुझिन परै गूढ़ परिपाटी।

    जाके सरन गये भय नाहीं सो सिंधु परमानंद दाटी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 74)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : परमानंददास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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