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झूलै कुँवरि गोपराइन की

jhulai kunwari goprain ki

गदाधर भट्ट

अन्य

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गदाधर भट्ट

झूलै कुँवरि गोपराइन की

गदाधर भट्ट

और अधिकगदाधर भट्ट

    झूलै कुँवरि गोपराइन की। मधि राधा सुंदरि-सुकुमारि॥

    प्रथमहि रितु पावस आरम्भ। श्रीवृषभानु मँगाये खंभ॥

    काढ़ि भवन ते रतन अमोल। पटि-पचि-रुचिर रचाइ हिंडोल॥

    एक-तें एक सुभग सुकुमारि। रचा मनीं बिधि कुंकुम नारि॥

    जगमगाति नव जोबन-जोति। निरखि नैन चकचौंधी होति॥

    बरन-बरन चूनरी सुरंग। फबी सलौने सोने-अंग॥

    राजत मनि-अभरन रमनीय। गुही जुही कबरी कमनीय॥

    गवाहिं सुघर सरस रसगीत। दुलरावैं मन मोहन मीत॥

    प्रेम-बिबस भई सकहिं गाइ। उपज्यौ आनंद उर समाइ॥

    दुरि देखत गोकुल-कुलराइ। सोभा निरखत मन अघाइ॥

    मुदित ‘गदाधर’ नंदकिसोर। लोचन भये भरे के चोर॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 83)
    • रचनाकार : ग
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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