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गरजत गगन उठे बदरा

garjat gagan uthe badra

गोविंद स्वामी

अन्य

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गोविंद स्वामी

गरजत गगन उठे बदरा

गोविंद स्वामी

और अधिकगोविंद स्वामी

    गरजत गगन उठे बदरा चहुँ दिसि, बरखा री आई आगम जनायो।

    गुलाबी पिछोरा पाग गुलाबी, तैसोई गुलाब सिर धनुक तनायो॥

    गुलाबी सिंहासन गुलाबी पिछवाई, गुलाबी कंठमाल धारिये।

    इहि विधि सों गिरिधारी बिराजत 'गोविंद’ प्रभुपर तन मन धन वारिये॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गोविंद स्वामी (पृष्ठ 90)
    • संपादक : कंठमणि शास्त्री 'विशारद'
    • रचनाकार : गोविंद स्वामी
    • प्रकाशन : कंठमणि शास्त्री 'विशारद', विद्याविभाग, कांकरोली, राजस्थान
    • संस्करण : 1951

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