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द्वापर वरत्यो कळजुग आयो

dwapar waratyo kळjug aayo

जसनाथ

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जसनाथ

द्वापर वरत्यो कळजुग आयो

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    द्वापर वरत्यो कळजुग आयो, कळजुग, आयो नर निकळंकी

    कुहायो जिण धर गैणार उपाई।

    पौन पाणी रा हीर (हेम) ढुळैला, वेदन तोड़ गिड़ाई।

    कजिये गोरख ब्रह्मा ईसर, बाँचै वेद सुवाई

    काजी बैठा लिखै कुराणो, करणी जीव कुमाई

    कोड़ छतीसूं टोटै दीनी, ‘बारां धर पौंचाई।

    बारां (रो) मांझी है निकळंकी, निकळंक सायबनै मान बड़ाई।

    थे उण सायब री करणी हालो, जो मत पार लंघो मोरा भाई।

    सो गुरु सदा सिंवर प्राणी, (जिण) थारी उमत आव उपाई।

    उमत घटती वाचा वधती, जै गुरु गोरख जाग जगाई।

    गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच सुणाई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 168)
    • संपादक : सूर्य शंकर पारेक
    • रचनाकार : जसनाथ
    • प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
    • संस्करण : 1996

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