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चंदा जनि उग आजुक राति

chanda jani ug aajuk rati

विद्यापति

अन्य

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विद्यापति

चंदा जनि उग आजुक राति

विद्यापति

और अधिकविद्यापति

    चंदा जनि उग आजुक राति। पियाके लिखिअ पठाओब पाति॥

    साओन सएँ हम करब पिरीति। जत अभिमत अभिसारक रीति॥

    अथरा राहु बुझाएब हँसी। पिबि जनि उगिलह सीतल ससी॥

    कोटि रतन जलधर तोहें लेह। आजुक रयनि घन तम कए देह॥

    भनइ विद्यापति सुभ अभिसार। भल जन करथि परक उपकार॥

    चाँद, आज रात तुम निकलो! आज मैं प्रीतम को पाती भेजने वाली हूँ। यह सावन का महीना है। मैं इसे प्यार करती हूँ। इसमें अभिसार का बड़ा सुभीता रहता है। मैं राहु को समझा-बुझाकर पटा लूँगी। चाँद को वह निगल जाएगा, छोड़ेगा नहीं। बादलों! लाख-लाख हीरे-जवाहर तुम मुझसे ले लो। आज की रात अँधेरा घना कर दो। विद्यापति ने कहा—“यह अभिसार की शुभ बेला है। भले आदमी ऐसे ही क्षणों में परोपकार करते हैं।”

    स्रोत :
    • पुस्तक : विद्यापति के गीत (पृष्ठ 74)
    • रचनाकार : विद्यापति
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2011

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