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अभी लाखों बहाने।

abhi lakhon bahane.

रामशंकर वर्मा

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रामशंकर वर्मा

अभी लाखों बहाने।

रामशंकर वर्मा

और अधिकरामशंकर वर्मा

    पेट से बटुए तलक का

    सफ़र तय करते मुसाफ़िर

    तू भले माने माने।

    देश पर अभिमान करने

    के अभी लाखों बहाने।

    शीशमहलों राजपथ जलसाघरों के

    मध्य स्थित जो शिवाले

    श्वेत वस्त्रों में यहाँ तैनात

    जीवनदूत

    जिनके हाथ में आले।

    ज़िंदगी की मौत पर

    जय हो सुनिश्चित

    हैं अहर्निश यही प्रण ठाने।

    शहर होगा भूख से व्याकुल

    निरखती दूधिए की राह माँएँ

    याद रखता है अभी भी गाँव।

    सूट टाई में अघाई

    शख़्सियतें अब भी

    अदब से पीर के छूती हैं पाँव।

    झुर्रियों का कवच पहने हाथ

    देते हैं सभी को

    चिर दुआओं के खजाने।

    सींकिया तन पर पहन कर

    हरित चूनर स्वर्ण झाले

    आज भी फसलें थिरकती

    झूम बीहू नृत्य करतीं

    फासलों के उर्ध्वगामी दौर में भी

    पर्व की गुझियाँ सिवइयाँ

    एकता की थाल में हैं स्वाद भरतीं।

    हैं अभी भी

    पेड़ के कोटर में सुग्गे

    चोंच में गौरैया के दाने।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामशंकर वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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