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पिता के पत्र पुत्री के नाम (आर्यो का हिंदुस्तान में आना)

pita ke patr putri ke naam (aryo ka hindustan mein ana)

जवाहरलाल नेहरू

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पिता के पत्र पुत्री के नाम (आर्यो का हिंदुस्तान में आना)

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    अब तक हमने बहुत ही पुराने ज़माने का हाल लिखा है। अब हम यह देखना चाहते हैं कि आदमी ने कैसे तरक़्क़ी की और क्या-क्या काम किए। उस पुराने ज़माने को इतिहास के पहले का ज़माना कहते हैं। क्योंकि उस ज़माने का हमारे पास कोई सच्चा इतिहास नहीं है। हमें बहुत कुछ अंदाज़ से काम लेना पड़ता है। अब हम इतिहास के शुरू में पहुँच गए हैं।

    पहले हम यह देखेंगे कि हिंदुस्तान में कौन-कौन सी बातें हुई। हम पहले ही देख चुके हैं कि बहुत पुराने ज़माने में मिस्र की तरह हिंदुस्तान में भी सभ्यता फैली हुई थी। रोज़गार होता था और यहाँ के जहाज़ हिंदुस्तानी चीज़ों को मिस्र, मेसोपोटैमिया और दूसरे देशों को ले जाते थे। उस ज़माने में हिंदुस्तान के रहने वाले द्रविड़ कहलाते थे। ये वही लोग हैं जिनकी संतान आजकल दक्षिणी हिंदुस्तान में मदरास के आसपास रहती हैं।

    उन द्रविड़ों पर आर्यों ने उत्तर से आकर हमला किया, उस ज़माने में मध्य एशिया में बेशुमार आर्य रहते होंगे। मगर वहाँ सब का गुज़र हो सकता था इसलिए वे दूसरे मुल्कों में फैल गए। बहुत से ईरान चले गए और बहुत से यूनान तक और उससे भी बहुत पश्चिम तक निकल गए। हिंदुस्तान में भी उनके दल के दल कश्मीर के पहाड़ों को पार करके आए। आर्य एक मज़बूत लड़ने वाली जाति थी और उसने द्रविड़ों को भगा दिया। आर्या के रेले पर रेले उत्तर-पश्चिम से हिंदुस्तान में आए होंगे। पहले द्रविड़ों ने उन्हें रोका लेकिन जब उनकी तादाद बढ़ती ही गई तो वे द्रविड़ों के रोके रुक सके। बहुत दिनों तक आर्य लोग उत्तर में सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान और पंजाब में रहे। तब वे और आगे बढ़े और उस हिस्से में आए जो अब संयुक्त प्रांत कहलाता है। जहाँ हम रहते हैं। वे इसी तरह बढ़ते-चढ़ते मध्य भारत के विंध्य पहाड़ तक चले गए। उस ज़माने में इन पहाड़ों को पार करना मुश्किल था क्योंकि वहाँ घने जंगल थे। इसलिए एक मुद्दत तक आर्य लोग विंध्य पहाड़ के उत्तर तक ही रहे। बहुतों ने तो इन पहाड़ियों को पार कर लिया और दक्षिण में चले गए। लेकिन उनके झुंड के झुंड जा सके इसलिए दक्षिण द्रविड़ों का ही देश बना रहा।

    आर्यों के हिंदुस्तान में आने का हाल बहुत दिलचस्प है। पुरानी संस्कृत किताबों में तुम्हें उनका बहुत-सा हाल मिलेगा। उनमें से बाज़ किताबें जैसे वेद उसी ज़माने में लिखी गई होंगी। ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है और उससे तुम्हें कुछ अंदाज़ा हो सकता है कि उस वक़्त आर्य लोग हिंदुस्तान के किस हिस्से में आबाद थे। दूसरे वेदों से और पुराणों और दूसरी संस्कृत की पुरानी किताबों से हमें मालूम होता है कि आर्य फैलते चले जाते थे। शायद इन पुरानी किताबों के बारे में तुम्हारी जानकारी बहुत कम है। जब तुम बड़ी होगी तो तुम्हें और बातें, मालूम होंगी। लेकिन अब भी तुम्हें बहुत सी कथाएँ मालूम हैं जो पुराणों से ली गई हैं। इसके बहुत दिनों बाद रामायण लिखी गई और उसके बाद महाभारत।

    इन किताबों से हमें मालूम होता है कि जब आर्य लोग सिर्फ़ पंजाब और अफ़ग़ानिस्तान में रहते थे, तो वे इस हिस्से को ब्रह्मावर्त कहते थे। अफ़ग़ानिस्तान को उस समय गांधार कहते थे। तुम्हें महाभारत में गांधारी का नाम याद है। उसका यह नाम इसलिए पड़ा कि वह गांधार या अफ़ग़ानिस्तान की रहने वाली थी। अफ़ग़ानिस्तान अब हिंदुस्तान से अलग है लेकिन उस ज़माने में, दोनों एक थे।

    जब आर्य लोग और नीचे, गंगा और जमुना के मैदानों में आए, तो उन्होंने उत्तरी हिंदुस्तान का नाम आर्यावर्त रखा।

    पुराने ज़माने की दूसरी जातियों की तरह वे भी नदियों के किनारे के ही शहरों में आबाद हुए। काशी या बनारस, प्रयाग और बहुत से दूसरे शहर नदियों के ही किनारे हैं।

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