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पिता के पत्र पुत्री के नाम (आदमी कब पैदा हुआ)

pita ke patr putri ke naam (adami kab paida hua)

जवाहरलाल नेहरू

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पिता के पत्र पुत्री के नाम (आदमी कब पैदा हुआ)

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    मैंने तुम्हें पिछले ख़त में बतलाया था कि पहले दुनिया में बहुत नीचे दर्जे के जानवर पैदा हुए और धीरे-धीरे तरक़्क़ी करते हुए लाखों बरस में उस सूरत में आए जो हम आज देखते हैं। हमें एक बड़ी दिलचस्प और ज़रूरी बात यह भी मालूम हुई कि जानदार हमेशा अपने को आसपास की चीज़ों से मिलाने की कोशिश करते गए। इस कोशिश में उनमें नई-नई आदतें पैदा होती गई और वे ज़्यादा ऊँचे दर्जे के जानवर होते गए। हमने यह तब्दीली या तरक़्क़ी कई तरह दिखाई देती है। मिसाल यह है कि शुरू-शुरू के जानवरों में हड्डियाँ थीं लेकिन हड्डियों के बग़ैर वे बहुत दिनों तक जीते रह सकते थे इसलिए उनमें हड्डियाँ पैदा हो गई। सबसे पहले रीढ़ की हड्डी पैदा हुई। इस तरह दो क़िस्म के जानवर हो गए—हड्डीवाले और बेहड्डी वाले। जिन आदमियों या जानवरों को तुम देखती हो वे सब हड्डीवाले हैं।

    एक और मिसाल लो। नीचे दर्जे के जानवरों में मछलियाँ अंडे दे कर उन्हें छोड़ देती हैं। वे एक साथ हज़ारों अंडे देती हैं लेकिन उनकी बिलकुल परवाह नहीं करतीं। माँ बच्चों की बिलकुल ख़बर नहीं लेती। वह अंडों को छोड़ देती है और उनके पास कभी नहीं आती। इन अंडों की हिफ़ाज़त तो कोई करता नहीं, इसलिए ज़्यादातर मर जाते हैं। बहुत थोड़े से अंडों से मछलियाँ निकलती हैं। कितनी जानें बरबाद जाती हैं! लेकिन ऊँचे दर्जे के जानवरों को देखो तो मालूम होगा कि उनके अंडे या बच्चे कम होते हैं लेकिन वे उनकी ख़ूब हिफ़ाज़त करते हैं। मुर्ग़ी भी अंडे देती है लेकिन वह उन पर बैठती है और उन्हें सेती है। जब बच्चे निकल आते हैं तो वह कई दिन तक उन्हें चुग़ाती है। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तब माँ उनकी फ़िक्र छोड़ देती है।

    इन जानवरों में और उन जानवरों में जो बच्चे को दूध पिलाते हैं बड़ा फ़र्क़ है। ये जानवर अंडे नहीं देते। माँ अंडे को अपने अंदर लिए रहती है और पूरे तौर पर बने हुए बच्चे जनती है। जैसे कुत्ते, बिल्ली या ख़रगोश। इसके बाद माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है, लेकिन इन जानवरों में भी बहुत से बच्चे बरबाद हो जाते हैं। ख़रगोश के कई-कई महीनों के बाद बहुत से बच्चे पैदा होते हैं लेकिन इनमें से ज़्यादातर मर जाते हैं। लेकिन ऊँचे दर्जे के जानवर एक ही बच्चा देते हैं और बच्चे को अच्छी तरह पालते पोसते हैं, जैसे हाथी।

    अब तुमको यह भी मालूम हो गया कि जानवर ज्यों-ज्यों तरक़्क़ी करते हैं वे अंडे नहीं देते बल्कि अपनी सूरत के पूरे बने हुए बच्चे जनते हैं, जो सिर्फ़ कुछ छोटे होते हैं। ऊँचे दर्जे के जानवर आमतौर से एक बार एक ही बच्चा देते हैं। तुमको यह भी मालूम होगा कि ऊँचे दर्जे के जानवरों को अपने बच्चों से थोड़ा बहुत प्रेम होता है। आदमी सबसे ऊँचे दर्जे का जानवर है इसलिए माँ और बाप अपने बच्चे को बहुत प्यार करते और उसकी हिफ़ाज़त करते हैं।

    इससे यह मालूम होता है कि आदमी ज़रूर नीचे दर्जे के जानवरों से पैदा हुआ होगा। शायद शुरू के आदमी आजकल के से आद‌मियों की तरह थे ही नहीं। वे आधे वनमानुष और आधे आदमी रहे होंगे और बंदरों की तरह रहते होंगे। तुम्हें याद है कि जर्मनी के हाइडल वर्ग में तुम हम लोगों के साथ एक प्रोफ़ेसर से मिलने गई थीं? उन्होंने एक अजायबख़ाना दिखाया था जिसमें पुरानी हड्डियाँ भरी हुई थीं, ख़ासकर एक पुरानी खोपड़ी जिसे वह संदूक़ में रखे हुए थे। ख़याल किया जाता है कि यह शुरू-शुरू के आदमी की खोपड़ी होगी। हम अब उसे हाइडल वर्ग का आदमी कहते हैं, सिर्फ़ इसलिए कि खोपड़ी हाइडल वर्ग के पास गड़ी हुई मिली थी। यह तो तुम जानती ही हो कि उस ज़माने में हाइडल वर्ग का पता था किसी दूसरे शहर का।

    उस पुराने ज़माने में, जब कि आदमी इधर-उधर घूमते फिरते थे, बड़ी सख़्त सर्दी पड़ती थी इसीलिए उसे बर्फ़ का ज़माना कहते हैं। बर्फ़ के बड़े-बड़े पहाड़ जैसे आजकल उत्तरी ध्रुव के पास हैं, इंग्लैंड और जर्मनी तक बहते चले आते थे। आदमियों को रहना बहुत मुश्किल होता होगा, और उन्हें बड़ी तकलीफ़ से दिन काटने पड़ते होंगे। वे वहीं रह सकते होंगे जहाँ बर्फ़ के पहाड़ हों। वैज्ञानिक लोगों ने लिखा है कि उस ज़माने में भूमध्य सागर था बल्कि वहाँ एक या दो झीलें थीं। लाल सागर भी था। यह सब ज़मीन थी। शायद हिंदुस्तान का बड़ा हिस्सा टापू था और पंजाब और हमारे सूबे का कुछ हिस्सा समुद्र था। ख़याल करो कि सारा दक्षिणी हिंदुस्तान और मध्य हिंदुस्तान एक बहुत बड़ा द्वीप है और हिमालय और उसके बीच में समुद्र लहरें मार रहा है। तब शायद तुम्हें जहाज़ पर बैठ कर मसूरी जाना पड़ता।

    शुरू-शुरू में जब आदमी पैदा हुआ तो इसके चारों तरफ़ बड़े-चड़े जानवर रहे होंगे और उसे उनसे बराबर खटका लगा रहता होगा। आज आदमी दुनिया का मालिक है और जानवरों से जो काम चाहता है करा लेता है। बाज़ों को वह पाल लेता है जैसे घोड़ा, गाय, हाथी, कुत्ता, बिल्ली वग़ैरा। बाज़ों को वह खाता है और बाज़ों का वह दिल बहलाने के लिए शिकार करता है, जैसे शेर और चीता। लेकिन उस ज़माने में वह मालिक था, बल्कि बड़े-बड़े जानवर उसी का शिकार करते थे और वह उनसे जान बचाता फिरता था। मगर धीरे-धीरे उसने तरक़्क़ी की और दिन-दिन ज़्यादा ताक़तवर होता गया यहाँ तक कि वह सब जानवरों से मज़बूत हो गया। यह बात उसमें कैसे पैदा हुई? बदन की ताक़त से नहीं क्योंकि हाथी उससे कहीं ज़्यादा मज़बूत होता है। बुद्धि और दिमाग़ की ताक़त से उसमें यह बात पैदा हुई।

    आदमी की अक़्ल कैसे धीरे-धीरे बढ़ती गई इसका शुरू से आज तक का पता हम लगा सकते हैं। सच तो यह है कि बुद्धि ही आदमियों को और जानवरों से अलग कर देती है। बिना समझ के आदमी और जानवर में कोई फ़र्क़ नहीं है।

    पहली चीज़ जिसका आदमी ने पता लगाया वह शायद आग थी। आजकल हम दियासलाई से आग जलाते हैं। लेकिन दियासलाइयाँ तो अभी हाल में बनी हैं। पुराने ज़माने में आग बनाने का यह तरीक़ा था कि दो चकमक पत्थरों को रगड़ते थे यहाँ तक कि चिनगारी निकल आती थी और इस चिनगारी से सूखी घास या किसी दूसरी सूखी चीज़ में आग लग जाती थी। जंगलों में कभी-कभी पत्थरों की रगड़ या किसी दूसरी चीज़ की रगड़ से आप ही आप आग लग जाती है। जानवरों में इतनी अक़्ल कहाँ थी कि इससे कोई मतलब की बात सोचते। लेकिन आदमी ज़्यादा होशियार था उसने आग के फ़ायदे देखे। यह जाड़ों में उसे गर्म रखती थी और बड़े-बड़े जानवरों को, जो उसके दुश्मन थे, भगा देती थी। इसलिए जब कभी आग लग जाती थी तो मर्द और औरत उसमें सूखी पत्तियाँ फेंक-फेंककर उसे जलाए रखने की कोशिश करते होंगे। धीरे-धीरे उन्हें मालूम हो गया होगा कि वे चकमक पत्थरों को रगड़कर ख़ुद आग पैदा कर सकते हैं। उनके लिए यह बड़े मार्के की बात थी, क्योंकि इसने उन्हें दूसरे जानवरों से ताक़तवर बना दिया। आदमी को दुनिया के मालिक बनने का रास्ता मिल गया।

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