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पिता के पत्र पुत्री के नाम (आदमियों के अलग-अलग दर्जे)

pita ke patr putri ke naam (adamiyon ke alag alag darje)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (आदमियों के अलग-अलग दर्जे)

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    लड़कों, लड़कियों और सयानों को भी इतिहास अक्सर एक अजीब ढंग से पढ़ाया जाता है। उन्हें राजाओं और दूसरे आदमियों के नाम और लड़ाइयों की तारीख़ें याद करनी पड़ती है। लेकिन दरअसल इतिहास लड़ाइयों का, या थोड़े से राजाओं या सेनापतियों का नाम नहीं है। इतिहास का काम यह है कि हमें किसी मुल्क के आदमियों का हाल बतलाए, कि वे किस तरह रहते थे, क्या करते थे और क्या सोचते थे, किस बात से उन्हें ख़ुशी होती थी, किस बात से रंज होता था, उनके सामने क्या-क्या कठिनाइयाँ आई और उन लोगों ने कैसे उनपर क़ाबू पाया। अगर हम इतिहास को इस तरीक़े से पढ़ें तो हमें उससे बहुत सी बातें मालूम होंगी। अगर उसी तरह की कोई कठिनाई या आफ़त हमारे सामने आए, तो इतिहास के जानने से हम उसपर विजय पा सकते हैं। पुराने ज़माने का हाल पढ़ने से हमें यह पता चल जाता है, कि लोगों की हालत पहले से अच्छी है या ख़राब, उन्होंने कुछ तरक़्क़ी की है या नहीं।

    यह सच है कि हमें पुराने ज़माने के मर्दों और औरतों के चरित्र से कुछ कुछ सबक लेना चाहिए। लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि पुराने ज़माने में भिन्न-भिन्न जाति के आदमियों का क्या हाल था।

    मैं तुम्हें बहुत से ख़त लिख चुका हूँ। यह चौबीसवाँ ख़त है लेकिन अब तक हमने बहुत पुराने ज़माने ही की चर्चा की है, जिसके बारे में हमें थोड़ी ही सी बातें मालूम हैं। इसे हम इतिहास नहीं कह सकते। हम इसे इतिहास की शुरुआत, या इतिहास का उदय कह सकते हैं। जल्द ही हम बाद के ज़माने का ज़िक्र करेंगे, जिससे हम ज़्यादा वाक़िफ़ हैं और जिसे ऐतिहासिक काल कह सकते हैं। लेकिन उस पुरानी सभ्यता का ज़िक्र छोड़ने के पहले आओ हम उसपर फिर एक निगाह डालें और इसका पता लगावें कि उस ज़माने में आद‌मियों की कौन-कौन सी क़िस्में थीं।

    हम यह पहले देख चुके हैं कि पुरानी जातियों के आदमियों ने तरह-तरह के काम करने शुरू किए। काम या पेशे का बँटवारा हो गया। हमने यह भी देखा है कि जाति के सरपंच या सरग़ना ने अपने परिवार को दूसरों से अलग कर लिया और काम का इंतज़ाम करने लगा। वह ऊँचे दर्जे का आदमी बन बैठा, या यों समझ लो कि उसका परिवार औरों से ऊँचे दर्जे में गया। इस तरह आदमियों के दो दर्जे हो गए—एक इंतज़ाम करता था और हुक्म देता था, और दूसरा असली काम करता था। और यह तो ज़ाहिर ही है कि इंतज़ाम करने वाले दर्जे का इख़्तियार ज़्यादा था और इसके ज़ोर से उन्होंने वह सब चीज़ें ले लीं जिन पर वह हाथ बढ़ा सके। वे ज़्यादा मालदार हो गए और काम करने वालों की कमाई को दिन-दिन ज़्यादा हड़पने लगे।

    इसी तरह ज्यों-ज्यों काम की बाँट होती गई और और दर्जे पैदा होते गए। राजा और उसका परिवार तो था ही, उसके दरबारी भी पैदा हो गए। वे मुल्क का इंतज़ाम करते थे और दुश्मनों से उसकी हिफ़ाज़त करते थे। वे आमतौर पर कोई दूसरा काम करते थे।

    मंदिरों के पुजारियों और नौकरों का एक दूसरा दर्जा था। उस ज़माने में इन लोगों का बहुत रोबदाब था और हम उनका ज़िक्र फिर करेंगे।

    तीसरा दर्जा व्यापारियों का था। ये वे सौदागर लोग थे जो एक मुल्क का माल दूसरे मुल्क में ले जाते थे, माल ख़रीदते थे, और बेचते थे और दूकानें खोलते थे।

    चौथा दर्जा कारीग़रों का था, जो हरेक क़िस्म की चीज़ें बनाते थे, सूत कातते और कपड़े बुनते थे, मिट्टी के बर्तन बनाते थे, पीतल के बर्तन गढ़ते थे, सोने और हाथीदाँत की चीज़ें बनाते थे और बहुत से और काम करते थे। ये लोग अक्सर शहरों में या शहरों के नज़दीक रहते थे लेकिन बहुत से देहातों में भी बसे हुए थे।

    सबसे नीचा दर्जा उन किसानों और मज़दूरों का था जो खेतों में या शहरों में काम करते थे। इस दर्जे में सबसे ज़्यादा आदमी थे। और सभी दर्जों के लोग उन्हीं पर दाँत लगाए रहते थे और उनसे कुछ कुछ ऐंठते रहते थे।

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