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करुणा हो श्रीराम की

karuna ho shriram ki

गिरिधर कविराय

अन्य

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गिरिधर कविराय

करुणा हो श्रीराम की

गिरिधर कविराय

करुणा हो श्रीराम की, औ’ गुरु को परताप।

पुनः पुरुषार्थ आपनौ, कटै अविद्या पाप॥

कटै अविद्या पाप, जुड़े जो यह संयोग।

देह इंद्रिय मन प्राण माँहिं, कोउ रहे रोग।

कह गिरिधर कविराय, छुटै जब जन्म अरु मरना।

कृत-कृत्य भयो पुमान, बहुरि कछु रहै करना॥

सर्वप्रथम तो भगवान की कृपा हो, फिर गुरुदेव का प्रताप भी हमारे लिए सहायक हो, साथ-ही-साथ कुछ पुरुषार्थ भी किया जाए, तो निश्चित रूप से अविद्या के सब पाप मिट जाते हैं। यदि संभोग हो जाए अर्थात परमात्मा की कृपा, गुरु का अनुग्रह एवं पुरुषार्थ का संयोग हो जाए तो शरीर, मन और इंद्रियों में कोई रोग या विकार नहीं रह सकता। जन्म और मरण के बंधन छूट जाते हैं। यह पुरुष, यह आत्मा कृतकृत्य अर्थात सफल हो जाता है और इसे कुछ भी करना-धरना शेष नहीं रह जाता। अर्थात् मनुष्य इस अवस्था में जीवन्मुक्त हो जाता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 313)
  • संपादक : टेकचंद शास्त्री
  • रचनाकार : गिरिधर कविराय
  • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
  • संस्करण : 1955

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