Font by Mehr Nastaliq Web

नीति पर कुंडलियाँ

नीति-विषयक दोहों और

अन्य काव्यरूपों का एक विशिष्ट चयन।

मूसा कहै बिलार सौं

गिरिधर कविराय

साईं समय न चूकिये

गिरिधर कविराय

साईं अपने भ्रात को

गिरिधर कविराय

साईं अवसर के पड़े

गिरिधर कविराय

काची रोटी कुचकुची

गिरिधर कविराय

राजा के दरबार में

गिरिधर कविराय

रहिये लटपट काटि दिन

गिरिधर कविराय

कृतघन कबहुँ न मानहीं

गिरिधर कविराय

कमरी थोरे दाम की

गिरिधर कविराय

जाकी धन धरती हरि

गिरिधर कविराय

साईं घोड़े आछतहि

गिरिधर कविराय

करुणा हो श्रीराम की

गिरिधर कविराय

बीती ताहि बिसारि दे

गिरिधर कविराय

कोप करै जिस शख्स पर

गिरिधर कविराय

कौवा कहे मराल से

गिरिधर कविराय

बिना बिचारे जो करै

गिरिधर कविराय

पीवै नीर न सरवरौं

गिरिधर कविराय

साईं बैर न कीजिये

गिरिधर कविराय

लाठी में गुण बहुत हैं

गिरिधर कविराय

पानी बाढ़ो नाव में

गिरिधर कविराय

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere