Font by Mehr Nastaliq Web

श्री हनुमद्महिमा

shri hanumadmahima

जगन्नाथदास रत्नाकर

अन्य

अन्य

जगन्नाथदास रत्नाकर

श्री हनुमद्महिमा

जगन्नाथदास रत्नाकर

और अधिकजगन्नाथदास रत्नाकर

    संतत हिमायत-हमेव मैं छक्यौ सो रहै,

    ताकी छाक छनक उछाकि को सकत है।

    कहै रतनाकर जमी जो जग ताकी धाक,

    ताहि फलफंदनि फलाकि को सकत है॥

    ताके सामना की करि कामना कुटिल कूर,

    मूढ़ मदचूर ह्वै थाकि को सकत है।

    बाँह दै बसावै जाहि बाँकौ हनुमान ताहि,

    तनक तरेरि तीखैं ताकि को सकत है॥

    दलिमलि मजात दर्प दुष्ट-दल-दानव कौ,

    पूरै आयु पिसुन-पिसाचनि पत्यारी की।

    कहै रतनाकर बिलाति सुख-स्वप्न-साथ,

    बाधक बिपच्छि-पच्छ-राच्छस कुचारी की॥

    बिमुख-बितंडी-प्रेत-मंडी खंड-खंड होति,

    अंडबंड बात चाई-भूत-भीर सारी की।

    बैरिनि के फेफरे फलकि फटि फाँक होत,

    हाँक होत बाँके बजरंग थाक-धारी की॥

    आपि अवलंब जगदंब अवधेसस्वरी कों,

    अरि की असोक-बाटिका धरि उतारैगौ।

    कहै रतनाकर त्यौं अच्छय-घमंड खंडि,

    चंडकर-पूत-दीठि चंडनि पै पारैगौ॥

    दैहै अमी-मूलिका सुमित्रानंदन रच्छन कौं,

    बेगि हीं बिपच्छिनि के पच्छनि कौं छारैगौ।

    भारी-भीर-भंजन प्रभंजन कौ पूत बीर,

    गंजन गनीम कौ गुमान करि डारैगौ॥

    कैधौं बलसागर की उद्धत तरंग तुंग,

    बोरन कौं सेना रजनीचर अकूत की।

    कहै रतनाकर कै संत-मान-रच्छन कौं,

    महिमा बसिष्ठ-दंड परम प्रभूत की॥

    जानकी के सोक जलजान की मथूल किधौं,

    कैधौं बर ब्रज की बिभूति पुरहूत की।

    कठिन कराल काल-दंड की रुजा है राम,

    जीत की धुजा है कै भुजा है पौनपूत की॥

    याही तैं हँकारत हुते ना हनुमान होति,

    हलबल भारी तुम्हैं जन-रखवारी में।

    कहै रतनाकर पै आनन उदास चाहि,

    लीनी थाहि बात जो सकुचि उचारी में॥

    कर भुजंगनि फेरौ हेरौ गदा,

    इतनौ बखेरौ ना हिमायत हमारी में।

    दलिमलि जाइहैं बिपच्छिनि के पच्छ सबै,

    तनक सरीखी तीखी ताकनि तिहारी में॥

    ऐहौ हनुमान मान एतौ जो बढ़ायौ जग,

    राखियै तौ ध्यान आन-बान के निभाए कौ।

    कहै रतनाकर बिसारियै कानि बर,

    बिरद सँभारियै कृपाल के कहाए कौ॥

    और की पौरि पै पठैयै मन ठैयै यहै,

    आपही बनैयै सब काज अपनाए कौ।

    फेरियै निगाह ना गुनाह हूँ किए पै लाख,

    राखियौ उछाह निज बाँह दै बसाए कौ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रत्नाकर रचनावली (पृष्ठ 482)
    • संपादक : कमलाशंकर त्रिपाठी
    • रचनाकार : जगन्नाथदास रत्नाकर
    • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ
    • संस्करण : 2009

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए