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सरसों के खेत की बिछायत बसंती बनी

sarson ke khet ki bichhayat basanti bani

ग्वाल

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ग्वाल

सरसों के खेत की बिछायत बसंती बनी

ग्वाल

और अधिकग्वाल

    सरसों के खेत की बिछायत बसंती बनी,

    तामें खड़ी चांदनी बसंती रतिकंत की।

    सोने के पलंग पर बसन बसंती साजे,

    सोनजूही मालैं हालैं हिय हुलसंत की॥

    ग्वाल कवि प्यारो पुखराजन को पयालो पूरी,

    प्यावत प्रिया को करै बात विलसंत की।

    राग में बसंत बाग, बाग में बसंत फूल्यो,

    साग में बसंत क्या बहार है बसंत की॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 398)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : ग्वाल
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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