Font by Mehr Nastaliq Web

नाहिं याकैं रूप कछु नाहिं कछु आकृति है

naahi.n yaakai.n ruup kachhu naahi.n kachhu aakriti hai

जसवंत सिंह

अन्य

अन्य

जसवंत सिंह

नाहिं याकैं रूप कछु नाहिं कछु आकृति है

जसवंत सिंह

नाहिं याकैं रूप कछु नाहिं कछु आकृति है,

असत हू नाहिं यह नाहिं यह सत है।

नाँ काहू सौ उपजी आप सौं भई है यह,

ऐसै कहें वाहि वह कैसे ठहरत है।

तासौं कहौ कैसैं करि कहियै जगतहेत,

कछुवै होइ ताकौं कैसैं कहौं हत है।

और बिधि कहै एकौ नाहिंनै बनत बात,

तातैं मैं बिचारि कह्यौ इच्छा मेरे मत है॥

स्रोत :
  • पुस्तक : जसवंतसिंह ग्रंथावली (पृष्ठ 136)
  • संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
  • रचनाकार : जसवंत सिंह
  • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
  • संस्करण : 1972

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY