को है दमयंती इंदुमती रति रातिदिन

ko hai damya.ntii i.ndumtii rati raatidin

केशवदास

केशवदास

को है दमयंती इंदुमती रति रातिदिन

केशवदास

को है दमयंती इंदुमती रति रातिदिन

होहि छबीली छनछबि जो सिगारिये।

केशव लजात जलजात जातवेद ओप,

जातरूप बापुरो विरूप सो निहारिये॥

मदन निरूपम निरूपन निरूप भयो,

चंद बहुरूप अनुरूप कै विचारिये।

सीता जी के रूप पर देवता कुरूप को हैं,

रूप ही के रूपक तो बारि बारि डारिये॥

दमयंती, इंदुमती और रति (सीता के सामने) क्या हैं! इन्हें रात-दिन बिजली से सँवारते रहिए तब भी उतनी छबीली होंगी जितनी सीता जी हैं। केशव कहते हैं कि सीता के रूप के सामने कमल और अग्नि की आभा लज्जित होती है और सोना बेचारा तो बदसूरत दिखाई पड़ता है। अनुपम कामदेव भी उपमा-निरूपण करते समय अदेह होने के कारण ठीक नहीं लगा, और रूपधारी

चंद्रमा तो अनेक रूप धारने के कारण स्वांगी ही अधिक लगा। सीता के रूप के सामने कुरूप देवनारियाँ क्या हैं? उनका ऐसा रूप है कि सौंदर्य की जितनी उपमाएँ हैं वे सब उनके रूप पर निछावर कर डालनी चाहिए।

स्रोत :
  • पुस्तक : केशव कौमुदी (पृष्ठ 96)
  • संपादक : लाला भगवानदीन
  • रचनाकार : केशवदास
  • प्रकाशन : राम नारायण लाल, इलाहाबाद
  • संस्करण : 1947

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