Font by Mehr Nastaliq Web

यह मार्ग कहाँ जाता है

ye marg kahan jata hai

अनुवाद : तरसेम

सुतिंदर सिंह नूर

अन्य

अन्य

सुतिंदर सिंह नूर

यह मार्ग कहाँ जाता है

सुतिंदर सिंह नूर

और अधिकसुतिंदर सिंह नूर

    यह मार्ग कहाँ जाता है

    हम किस मार्ग पर जा रहे हैं?

    तुम मुझे पुछती हो

    मैं कहता हूँ ज़रूरी नहीं प्रत्येक राह कहीं जाए

    शायद मार्ग कहीं नहीं जाता

    बहुत विषम मार्ग है

    हो सकता है उस घाटी पर जाकर ख़त्म हो जाए

    हो सकता है इसके किनारे किसी दरिया से मिलते हों

    हो सकता है इस रास्ते के पार कोई मुश्किल पहाड़ हो

    हो सकता है यह मार्ग ऐसे ही वापिस लौट आए

    हो सकता है राहों में से कोई पगडंडी कहीं निकल जाए

    कहीं भी किसी नगर-डगर के बग़ैर

    रात उतर सकती है

    किसी भी छत-अछत के बिना

    बरसात सकती है

    तुम मूक तेज़-तेज़ क़दमों से

    मुस्कुराती हुई

    और पास हो जाती हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साथ चलते हुए (पृष्ठ 39)
    • रचनाकार : सुतिंदर सिंह नूर
    • प्रकाशन : टवेंटी फस्ट सेंचूरी पब्लिकेशन
    • संस्करण : 2005

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए