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यादगार

yadgar

अलेक्सांद्र पूश्किन

अन्य

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और अधिकअलेक्सांद्र पूश्किन

    मैंने अपनी यादगार ली बना, नहीं पर हाथों से,

    होगी इसकी पूजा दुनिया भर के झुकते माथों से,

    देखो यह नभ में गर्वोन्नत अपना शीश उठाती है,

    इसके नीचे खड़ी सिकंदर की मीनार लजाती है।

    मूक बना दे मौत मुझे पर वीणा तो होगी वाचाल,

    मुझे वहाँ पर पहुँचाएगी जहाँ नहीं जा सकता काल,

    एक सुकवि का भी वसुधा पर जब तक शेष रहेगा धाम,

    बजा करेगी मेरी वीणा, जगा करेगा मेरा नाम।

    रूस देश की विस्तृत पृथिवों मेरी कीर्ति गुँजाएगी,

    हर सजीव भाषा मानव की मेरी कविता गाएगी,

    स्लाव और फिन, कलमुक, तुगुस की मैं अभिमानी संतान,

    जिनके गौरव की गाथा से परिचित है रूसी मैदान।

    युग-युग तक सब राष्ट्र जातियाँ देंगी मुझको आदर मान,

    क्योंकि विशद भावों की प्रेरक है मेरी वीणा की तान,

    ज़ालिम घड़ियों में गाया है मैंने आज़ादी का राग,

    और सताए लोगों के प्रति न्याय दया की रक्खी माँग।

    अंबर के अनुशासन पर चल, वाणी, सुन उसकी आवाज़,

    बंदगोई से सीख डरना, नामवरी का माँग ताज,

    निंदा और सुयश से अपने कान मूद ले, मुँह मत खोल,

    मुख के अंदर ही मुखरित हो मिट जाते मूढ़ों के बोल!

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 77)
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र पूश्किन
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 1964

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