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विद्युत वाणी

vidyut vani

अनुवाद : विष्णु खरे

टी. एस. एलियट

अन्य

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टी. एस. एलियट

विद्युत वाणी

टी. एस. एलियट

और अधिकटी. एस. एलियट

     

    प्रस्वेदित चेहरों पर मशाल के लोहित प्रकाश के पश्चात्
    उपवनों की कुहरी शांति के पश्चात्
    चिल्लाहटों और चीख़ों
    कारागारों तथा महलों
    सुदूर पर्वतों पर वासंती मेघ गर्जना की प्रतिध्वनि के पश्चात्
    पथरीली जगहों में यातना के पश्चात्
    वह जो जीवित था अब मृत है
    हम जो जी रहे थे अब मर रहे हैं
    कुछ धैर्य से

    यहाँ जल नहीं है केवल शिला है
    शिला और जल नहीं और रेतीली राह
    राह पर्वतों में चक्कर खाती हुई
    जो शिलाओं के जलहीन पर्वत हैं
    यदि जल होता तो हम रुकते और पीते
    शिलाओं के बीच कोई न ठहर सकता न सोच सकता है
    पसीना सूखा है और पैर रेत में धँस गए हैं
    केवल यदि जल होता शिलाओं के बीच
    सड़े दाँतों वाले मृत पर्वतमुख में, जो थूक नहीं सकता
    यहाँ न कोई ठहर सकता है न सो सकता है न बैठ सकता है
    पर्वतों में तो मौन भी नहीं है
    किंतु वर्षाहीन शुष्क वंध्या गर्जना
    पर्वतों में तो एकांत भी नहीं है
    किंतु कीचड़ के तिड़के हुए घरों के दरवाज़ों से
    लाल क्रुद्ध चेहरे घुरघुराते हैं, तिरस्कृत करते हैं यदि जल होता
    और शिलाएँ नहीं
    यदि शिलाएँ होतीं
    और जल भी
    और जल
    झरना
    शिलाओं के बीच एक तड़ाग
    यदि केवल जल की ध्वनि होती
    कीड़े
    तथा गाती हुई सूखी घास नहीं
    किंतु शिला पर जल की ध्वनि
    जहाँ तपस्विनी-सारिका चीड़-वृक्षों में गाती है
    ड्रिप ड्रॉप ड्रिप ड्रॉप ड्रॉप ड्रॉप ड्रॉप
    किंतु जल नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मरु-प्रदेश और अन्य कविताएँ (पृष्ठ 56)
    • रचनाकार : टी. एस. एलियट
    • प्रकाशन : नोबेल साहित्य प्रकाशक, कटक-2
    • संस्करण : 1960

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