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उसके पास पति नहीं है

uske pas pati nahin hai

महेश चंद्र पुनेठा

महेश चंद्र पुनेठा

उसके पास पति नहीं है

महेश चंद्र पुनेठा

उसके पास पति नहीं है

पिता भी बचपन में ही चल बसे

एक छोटा भाई है उसका

उसके और छोटे भाई के बीच

लगभग 11-12 वर्ष का अंतर है

माँ उस क्षेत्र की सबसे पहली महिला दुकानदार है

वह समाज सेवा करती है

अनेक महिला संगठनों से जुड़ी है

महिला उत्पीड़न-शोषण के मुद्दों पर

वह अक्सर लड़ती-झगड़ती मिल जाती है

अक्सर पुरुष साथियों के साथ

काम करना पड़ता है उसे

पर कोई नहीं पूछता उससे उनके बारे में

उसे आए दिनों घर से बाहर रहना पड़ता है

घर लौटने में तो अक्सर देर हो जाती है

पर उसे इस बात पर

कभी कोई टेंशन नहीं होता है

बस एक बार माँ को सूचित कर देती है फ़ोन से

जब कभी पढ़ने में

कुछ अधिक रम जाता है उसका मन

देर रात तक भी पढ़ती रहती है

तब सुबह देर तक ताने रहती है चादर

जल्दी उठने का भी उसे कभी कोई टेंशन नहीं

जब मन करता है उसका

लॉन्ग ड्राइव में जाने का

निकाल अपनी कार या बाइक

चल देती है पहाड़ी नदी की तरह

कोई उससे फेरुवा नहीं कहता है

कोई नहीं पूछता कहाँ गई थी और क्यों?

वह कभी जींस-टॉप

कभी सलवार-क़मीज़

तो कभी साड़ी में भी दिख जाती है

वह अपने जीवन के सारे फ़ैसले ख़ुद लेती है

इन दिनों वह आपदा राहत कार्यों में लगी है

वह जब भी घर से निकलती है

मुहल्ले की औरतें

अपनी छत की रेलिंग पर खड़ी

उसको दूर तक जाते देखती रहती हैं

जैसे देख नहीं खोज रही हैं सदियों से कुछ

और हमेशा

भीतर की ओर लौट आती हैं खोजती हुई

जहाँ खोकर रह जाती हैं

कुछ चुनी-अनचुनी गुफाओं और बाड़ों में

और याद करने लग जाती हैं

तमाम कड़वे फलों के बीच

कुछ मीठे फलों के स्वाद को।

स्रोत :
  • रचनाकार : महेश चंद्र पुनेठा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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