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उस रात पगला गए थे

us raat pagla ge the

अनुवाद : कांता

अन्ना अख्मातोवा

अन्य

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अन्ना अख्मातोवा

उस रात पगला गए थे

अन्ना अख्मातोवा

और अधिकअन्ना अख्मातोवा

    उस रात पगला गए थे हम दोनों,

    सिर्फ़ एक अशुभ अँधेरे में था रौशन

    हमारा रास्ता,

    बुदबुदा रहे थे खड्ड,

    लवंग-पद्मों में महक रहा था एशिया।

    एक अजनबी शहर से गुज़रे हम

    एक धूमिल गति और गरमी आधी रात की

    सहते हुए :

    आश्लेषा नक्षत्र के नीचे अकेले

    एक-दूसरे को देखने से डरते हुए।

    यह हो सकता था बग़दाद या स्तम्बुिल,

    किंतु हंत, वॉरसा नहीं, लेनिनग्राद,

    और इतनी कड़वी असंगति में थी

    घुटन : यतीमख़ाने की गंध-सी।

    लगता था, समानांतर चलते हैं युग

    एक अदृश्य हाथ ने डफ़ली पर दी थाप ज़ोर से।

    मंडराती रहीं ध्वनियाँ

    गुप्त संकेतों की तरह

    अँधेरे में

    हमारे सामने।

    उस रहस्यमय धुंध में तुम्हारे साथ मैं—

    चल रहे थे जैसे हम

    किसी लावारिस ज़मीन पर,

    किंतु यकायक

    हमारे मिलने-बिछुड़ने को करता प्रकाशित

    हीरक-पोत-सा

    तिर आया चाँद-बाहर।

    लौट कर आए वह रात कभी तुम तक,

    तुम्हारे भाग्य में

    रहस्य है जो मेरे लिए

    समझना :

    किसी का था स्वप्न

    यह क्षण पावन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 365)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : अन्ना अख्मातोवा
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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