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ऊँघता शहर

unghta shahr

यतीश कुमार

यतीश कुमार

ऊँघता शहर

यतीश कुमार

ऊँघते शहर में

गाँव के सपने

अक्सर उड़ जाते हैं

रह जातीं हैं सिर्फ़ बैरन आँखें

दूर से दिखने वाला शहर

अस्ल में विरह की अधूरी कहानी है

नयनों से निकले मेघदूत वहाँ पहुँच नहीं पाते

गाँव के सीमांत तक जाते-जाते बरस पड़ते हैं

मन के ग़ुब्बारे उड़ते हैं

अंतस की ज़मीन डोर पकड़े ताकती है

देखते-देखते ग़ुब्बारे गुम हो जाते हैं

हाथ में टूटी हुई डोर रह जाती है

नगर की तलाश है सबको

पर गाँव बार-बार

कंधे पर हाथ रख देता है

और हम थोड़ा उसकी ओर हो लेते हैं

वर्तमान की सुध नहीं

इतिहास याद नहीं

भविष्य देख नहीं सकते

और समय है कि

क्षण-क्षण करके रीतता जा रहा है

खंडहरों पर बने मकान

अपनी कहानी नहीं कह पाते

जबकि समय राजनीतिक है, धार्मिक

वह अपनी ही कहानी कहता जा रहा है

कहानियों में आपबीती ढूँढ़ते-ढूँढ़ते

हम जगबीती के रास्ते निकल जाते हैं

और बन जाते हैं एक अधूरा बना मकान

जिसमें रहा जाता है, ही बेचा।

स्रोत :
  • रचनाकार : यतीश कुमार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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