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उम्मीद के फूल और बसंत की मनमानी

ummid ke phool aur basant ki manmani

अनादि सूफ़ी

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अनादि सूफ़ी

उम्मीद के फूल और बसंत की मनमानी

अनादि सूफ़ी

और अधिकअनादि सूफ़ी

    रात आख़िरी साँसें गिन रही है

    अब तारों को नींद जाएगी

    सूरज भी सफ़र के लिए मोज़े कसने लगा है

    पर तुम नहीं आए,

    तुम नहीं आए तो नदी की आँख नम थी

    चाँद गुमसम था

    किसी ने कोई ग़ज़ल भी नहीं कही,

    तुम आते तो पत्थरों में राग जाग जाता

    रेत में सृष्टि हो जाती

    अनहद प्रार्थना को एक निश्चित स्वर मिल जाता!

    तितलियों ने भोर के संग परों के रंग बदल लिए

    बदमाश हवा फ़िज़ा में

    तुम्हारे बदन की ख़ुशबू भर रही है

    मैं उँगलियों से सीने पर किसी का नाम

    लिख रहा हूँ, मिटा रहा हूँ

    पर तुम नहीं आए,

    तुम नहीं आए तो महुए में कोई गंध नहीं थी

    कोयल की आवाज़ में रस नहीं था

    तुलसी को जल देती पड़ोस की लड़की भी चुप ही रही,

    तुम आते तो बेघर उदासियों को एक ठौर मिल जाता

    दीवार पर सजे

    उपेक्षित पेड़ की ठूँठ टहनी वाले चित्र पर

    आसमान से कोई चिड़िया उतर आती

    काठ के घोड़े में गति का संचार हो जाता!

    धूप सड़कों पर आवारा घूम रही है

    डाकिया दिन का अंतिम चक्कर लगा गया है

    मैं मन की गाँठें बेतरह खोल रहा हूँ

    कस रहा हूँ

    पर तुम अब भी नहीं आए,

    तुम नहीं आए तो गोरैया मेरी खिड़की से दूर बैठी

    बाँसुरी वाले ने गली में कोई धुन नहीं बजाई

    छत की मुड़ेर पर उकड़ू बैठे बादलों का भी मुँह उतर गया,

    तुम आते तो मौसम का बाक़ी मेघ बरस जाता

    घास के सूखे तिनके को

    हरा होने का वरदान मिल जाता

    मेरे शापग्रस्त सपनों में

    कोई उम्मीद के फूल रख जाता!

    उफ़ुक़ पर दरिया का मुँह पीला पड़ गया है

    कबूतरों के झुँड छज्जों की ओट ले रहे हैं

    शजर के पत्ते ज़रा देर में

    स्याह सायों में तब्दील हो जाएँगे

    पर तुम तो अब भी नहीं आए…

    असल में,

    तुमको तो नहीं ही आना था

    तुम नहीं ही आए!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनादि सूफ़ी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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