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उजाले के लालच में

ujale ke lalach mein

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

अन्य

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वीरभद्र कार्कीढोली

उजाले के लालच में

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    खिड़की, दरवाज़े खुले मत रखो

    प्रदूषित है यह मंद हवा

    उजाले के लालच में मत पड़ो

    प्रदूषित है यह उजाला भी

    सूरज डूबने वाला है

    सिटकनी लगाओ दरवाज़ों में

    होशियार, बाहर

    कुछ अलग हवा

    बह रही है...बह रही है...!

    टिकाओ अपने को वहाँ

    दीवार, जहाँ तुम टिके हो

    मजबूत नहीं हैं, नहीं है

    क्यों रही है हवा इस तरह

    घुस-घुसकर दरारों से

    होशियार, उजाले के लालच में

    खिड़की, दरवाज़े मत खोलना

    हवा की तरह तो नहीं

    पर है हवा ही बह रही

    जैसे भी हो, इस दीये को

    बुझने ने दो, दो

    यह शाम

    घना अँधेरा ला रही है।

    होशियार, दरवाज़ा खोलकर

    बाहर मत निकलना...।

    यह मंद हवा

    यह उजाला

    प्रदूषित है, प्रदूषित...!

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 71)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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