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सहपाठी

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विनोद दास

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विनोद दास

सहपाठी

विनोद दास

और अधिकविनोद दास

    वह मेरे साथ पढ़ता था

    खाने की छुट्टी में

    अपने डब्बे खोलकर

    टूट पड़ते थे जब भूखे पशु की तरह

    हम सब खाने पर

    हमारी आँखों से बचते हुए

    आहिस्ता-आहिस्ता वह नल के पास जाता था

    और उसमें मुँह लगा देता था

    मैं अक्सर देखता था

    आती थी फ़ीस की तारीख़

    जैसे-जैसे बहुत क़रीब

    उसका ख़ून सूखता जाता था

    किताब नहीं लाने पर

    वह कई दफ़ा कुकड़ूँ-कूँ बोल चुका था

    जाने फिर भी क्यों

    वह कक्षा में सबसे पहले आता था

    गंदी क़मीज़ पहनने के कारण

    उसे स्कूल से लौटा दिया गया

    एक दिन घर

    उस दिन के बाद स्कूल में

    मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा

    एक झुलसती दोपहर में

    वह बैठा दिखाई दिया मुझे

    एक बन रही इमारत के क़रीब

    उसके पास सीमेंट का एक ख़ाली तरल था

    और खरोंच रहा था नाख़ून से वह

    अपनी गदोली में बना काला तिल

    स्रोत :
    • पुस्तक : ख़िलाफ़ हवा से गुज़रते हुए (पृष्ठ 70)
    • रचनाकार : विनोद दास
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1986

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