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लिपटकर रोने की सख़्त मनाही है

lipatkar rone ki sakht manahi hai

निखिल आनंद गिरि

निखिल आनंद गिरि

लिपटकर रोने की सख़्त मनाही है

निखिल आनंद गिरि

रात में सियारों की हुआँ-हुआँ की तरह

सुनाई देती है मेट्रो की हल्की आवाज़

ठूँठ पेड़ों की तरह दिखते हैं

दूर-दूर तक वीरान मकान।

शिकार के लिए ढूँढ़ने नहीं पड़ते शिकार

बाइज़्ज़त होम डिलीवरी की भी व्यवस्था है।

और मुझे ये सच कहने पर चालान मत कीजिए

कि हम एक जंगल को शहर समझने लगे हैं।

ऐसा नहीं कि पहली बार लिखा गया हो ये सब

मगर ये हर भाषा में बार-बार बताया जाना ज़रूरी है।

जैसे बार-बार बनाई जानी होती है दाढ़ी

याद किए जाने होते हैं आख़िरी विलाप

छूने होते हैं पाँव—बेमन से।

घर लौटना होता है नियम और शर्तों के बिना

बीमार होने पर वही कड़वी दवाइयाँ बार-बार

जैसे बार-बार बदलते बेटों के लिए

नहीं बदलते माँ के व्रत

और सुनिए इस शहर के चरित्र के ख़िलाफ़

आपको दुर्लभ दिखने के लिए रोना हो बार-बार

तो ठूँठ पेड़ बचाकर रखिए दो-चार।

किसी से लिपटकर रोने की सख़्त मनाही है।

इस शहर में छपने वाले अमीर अख़बारों के मुताबिक़

निहायती ग़रीब, गंदे और बेरोज़गार गाँवों से।

वेटिंग की टिकट लेने से पहले मुसाफ़िरों को।

ख़रीदने होते हैं शहर के सम्मान में

अँग्रेज़ी के उपन्यास।

गोरा होने की क्रीम।

सूटकेस में तह लगे कपड़े।

और मीडियम साइज़ के जॉकी।

हालाँकि लँगोट के ख़िलाफ़ नहीं है ये शहर

और सभ्य साबित करने के लिए

अभी शुरू नहीं हुआ भीतर तक झाँकने का चलन।

यहाँ हर दुकान में सौ रुपए की किताब मिलती है

जिसमें लिखे हैं सभ्य दिखने के सौ तरीक़े

जैसे सभ्य लोग सीटियाँ नहीं बजाते

या फिर उनके घरों में बुझ जाती हैं लाइट

दस बजते-बजते।

या जैसे मोहल्ले की पुरानी औरतें कहती हैं

अच्छे या सभ्य नहीं होते ‘47 वाले पंजाबी।

बात-बात पर आंदोलन के मूड में जाता है जो शहर

हमारे उसी शहर में थूकने की आज़ादी है कहीं भी।

गालियाँ बकना नाश्ते से भी ज़रूरी है हर रोज़

और लड़कियों के लिए यहाँ भी दुपट्टा डालना ज़रूरी है

जहाँ बिजली जाती है कभी और डर।

जिनकी राजधानी होगी वो जानें।

किसी दिन तुम इस शहर आओ

और कह दो कि मुझे सफ़ाई पसंद है

तो पूरे होशोहवास में सच कहता हूँ,

डाल आऊँगा कूड़ेदान में सारा शहर।

स्रोत :
  • रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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