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सुवरा

suvra

कुमार मंगलम

अन्य

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और अधिककुमार मंगलम

    कैसी नदी हो तुम सुवरा?

    कहते हैं—

    यह महादेश नदियों का देश है

    और नदियाँ यहाँ की देवियाँ है

    तो कैसे पड़ा तुम्हारा नाम सुवरा

    कर्मनाशा की पड़ोस की बहिन नदी

    दुर्गावती तुम्हारी सखी

    कैसा हतभाग्य है

    कि विंध्याचल की बाँह कहा जाने वाला कैमूर

    है तुम्हारा भाई

    और तुम्हारे परिजन अलक्षित और अपवित्र

    तुम्हारा जल भी

    कर्मनाशा और दुर्गावती की तरह

    किसी अनुष्ठान का हिस्सा नहीं

    तुम्हारे किनारे तो कभी

    नहीं रहे कोई असुर

    बल्कि देवी मुंडेश्वरी तुम्हारी पड़ोसी हैं

    कहते हैं गुप्तकालीन अष्टफलकीय मंदिर का

    अनोखा स्थापत्य लिए हुए

    बिहार का प्राचीनतम देवीतीर्थ तुम्हारे पड़ोस में बसा है

    फिर भी तुम अलक्षित रह गईं

    तुम तो जीवनदायिनी-फलदायिनी नदी हो

    तुम्हारे ही जल से सिंचित हो

    लहलहाती है फसल धान की

    किसानों के सीने गर्व से फूलते हैं

    जब लहलहाती बारिश में बढ़ी चली आती हो

    और जब गर्मी में सिकुड़ने लगती हो तो

    पनुआ उगा, किसान गर्मी से राहत पाते हैं और धन भी।

    पशु, वन्य जीव तुम्हारे जल से अपनी प्यास मिटाते हैं।

    सुवरा! तुम शास्त्रों में और लोकजीवन में भले ही अलक्षित हो

    भले ही तुमसे किसी राजा ने विवाह नहीं किया

    तुम विष्णुपद से नहीं निकली

    हुम ब्रह्मा के कमंडल में नहीं रही कभी

    तुम्हें शिव ने नहीं किया अपने जटाजूट में धारण

    तुम उतनी ही पवित्र हो सुवरा

    जितनी गंगा

    सुवरा!

    कैसे तुम स्वर्णा से सुवरा हुई

    तुम तो सुवर्णा थी

    कथा कहो नदी सुवर्णे!

    एक समय था

    जब मैं स्वर्णा थी

    मेरे तली में सोन की तरह मिलते थे स्वर्णकण

    सुंदर वर्षों-सी चमकती

    सोन मेरा

    दूर का भाई

    लोगों की भूख बढ़ती गई

    और मेरी रेत से बहुमंज़िला इमारतें तनती गई

    धीरे-धीरे मेरे सभी स्वर्ण

    मनुष्य की असमाप्त भूख ने,

    लोभ ने, लालच ने निकाल लिए मेरे गर्भ से

    अब जो बचा मुझमें वह

    सिर्फ़ बजबजाता पानी था

    लोककथाओं में मेरो उपस्थिति थी नहीं

    बाण और वात्स्यायन जो मेरे किनारे के रहवासी थे

    उन्होंने दर्ज़ नहीं किया अपनी किसी कथा में मुझे

    शास्त्र से पहले ही बेदखल थी

    यह लोभ-लाभ का कुटुंब है मनुष्य

    जब उसके लालच की पूर्ति कर सकी

    स्वर्णा से होती गई सुवरा

    कोई आश्चर्य नहीं कि

    कल सुवरा भी नहीं होगी

    जैसे नहीं बची स्वर्णा

    सुवरा भी नहीं बचेगी

    मनुष्य के असमाप्त लोभ से

    यह नदियों को देवी मानने का महादेश

    नदियों को अपनी भोग्या मानता है

    नदियाँ इनके असमाप्त लोभ की सदानीरा हैं।

    1. सुवरा : कैमूर ज़िले की एक नदी, जिसके किनारे कैमूर जिला मुख्यालय भभुआ अवस्थित है। सुवरा जो कभी स्वर्णा नदी थी, लेकिन अब बजबजाती नाली में तब्दील सड़ती हुई एक अभिशापित और विषैली नदी है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार मंगलम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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