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सुबह

subah

अनुवाद : अशोक पाण्डे

सादी यूसुफ़

अन्य

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और अधिकसादी यूसुफ़

    वह लड़की जो काम करती है एक वेयरहाउस में

    बाहर निकलती है तीसरी मंज़िल पर के अपने कमरे से।

    वह ज़ीने की बत्ती जलाती है

    उसका चेहरा चमकता है रोशनी में

    वह थोड़ा हिचकिचाती है

    इसके पहले कि सड़क उसके संसार को अपने में डुबो ले।

    आख़िरकार इस सुबह वह जाएगी कहवाघर में

    अपने कोट में दुलारती हुई प्याले को।

    सड़क पर ठंड है अभी

    और यह कहवाघर जो उसे इतना पसंद है, गरमाने लगा है।

    वह कितना चाहती है यहाँ देर तक रह पाए!

    कोने की मेज़ पर बैठी रहे

    कुछ पढ़े

    और संगीत सुनती रहे

    और क्या मालूम

    हो सकता है अचानक कहीं से प्यार जाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 392)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सादी यूसुफ़
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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