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मकड़जाल

makaD़jal

संदीप तिवारी

अन्य

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संदीप तिवारी

मकड़जाल

संदीप तिवारी

और अधिकसंदीप तिवारी

    भिनसार हुआ, उससे पहले

    दादा का सीताराम शुरू

    कितने खेतों में कहाँ-कहाँ

    गिनना वो सारा काम शुरू

    'धानेपुर' में कितना ओझास,

    पूरे खेतों में पसरी है

    अनगिनत घास

    है बहुत काम...

    हरमुनिया-सा पत्थर पकड़े

    सरगम जैसा वो पंहट रहे

    फ़रुहा, कुदार, हंसिया, खुरपा

    सब चमक गए

    दादा अनमुन्है निकल पड़े

    दाना-पानी, खाना-पीना

    सब वहीं हुआ...

    बैलों के माफ़िक जुटे रहे

    दुपहरिया तक,

    घर लौटे तो कुछ परेशान

    सारी थकान

    गुनगुनी धूप में सेंक लिए

    अगले पाली में कौन खेत

    अगले पाली में कौन मेड़

    सोते-सोते ही सोच लिए

    खेती-बारी में जिसका देखो यही हाल

    खटते रहते हैं साल-साल

    फिर भी बेहाल

    बचवा की फ़ीस, रज़ाई भी

    अम्मा का तेल, दवाई भी

    जुट पाया

    कट गई ज़िंदगी

    दाल-भात तरकारी में...!

    ये ढोल दूर से देख रहे हैं

    लोग-बाग़

    नज़दीक पहुँचकर सूँघे तो

    कुछ पता चले

    ख़ुशियों का कितना है अकाल

    ये मकड़जाल

    जिसमें फँसकर सब नाच रहे

    चाँदनी रात को दिन समझे

    कितने किसान

    करते प्रयास

    फिर भी निराश

    ऐसी खेती में लगे आग!

    भूखे मरते थे पहले भी

    भूखे मरते हैं सभी आज

    क्या और कहूँ?

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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