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स्रोत फूट न सका

srot phoot na saka

अनुवाद : बीना क्षत्रिय

मनप्रसाद सुब्बा

अन्य

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मनप्रसाद सुब्बा

स्रोत फूट न सका

मनप्रसाद सुब्बा

स्रोत फूटने से पहले ही

अब तो बर्खायाम बीत गया।

कसकर भीतर ही भीतर गाँठ पड़ी पीड़ाओं को

खुलकर स्वतंत्र बहने के लिए

बहुत लंबी प्रतीक्षा थी आषाढ़-सावन की

पर आशा के सावन की मरने जैसी स्थिति होने पर भी

स्रोत फूट ही नहीं सका।

वर्षा होने से अधिक

पसीना बहता है।

वर्षा तो होती है आजकल

पर प्रोपैगेंडा जैसी

अर्थात् टी.वी. सीरियल के बीच-बीच में विज्ञापन जैसी।

नदियों में भी इस वर्ष

कोई उत्साह नहीं दिखा।

कोई हुँकार भी सुनाई नहीं पड़ा।

दैनिक रूटिन जैसी बह रही हैं ये नदियाँ।

ऊपर आकाश प्रायः ही

धुँधले बादलों से चेहरा पोतकर

गंभीर चिंता में पड़ने का अभिनय करता है।

नीचे मेरी ढलान-उपत्यका तो

मन खोलकर रो तक नहीं पा रही हैं।

कहाँ क्या गलती हुई

जो तरल गति में गाँठे पड़ी हैं।

स्रोत फूट ही नहीं सका।

स्रोत :
  • पुस्तक : ऋतु कैनवास पर रेखाएँ (पृष्ठ 59)
  • रचनाकार : मनप्रसाद सुब्बा
  • प्रकाशन : नीरज बुक सेंटर
  • संस्करण : 2013

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