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स्वप्न नौका

svapn nauka

श्री अरविंद

अन्य

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श्री अरविंद

स्वप्न नौका

श्री अरविंद

और अधिकश्री अरविंद

     

    स्वप्न-अग्नि से बनी एक नौका में कौन था यह जो आया मेरे सन्निकट, 
    सूर्य-स्वर्णदीप्त तन के साथ अपना प्रदीप्तिमय मस्तक लेकर? 
    एक मधुर गोपन मंद्र स्वर में नीरवता हो गई द्रवित, 
    क्या तुम आते अब, क्या हृदय-अग्नि है तत्पर?

    हृदय-गुफा के एकांतों में गुप्त कुछ था जो हुआ प्रकंपित, 
    इसने किया सर्व अनुस्मरण जिसे जीवन के हर्ष ने किया था पोषित, 
    कल्पना की उस परमानंद की जिसे सदा को लुप्त जान करना होगा उत्सर्जित, 
    और नौका चली गई और स्वर्णदीप्त देव हो गए तिरोहित।

    अब निवास करती है विश्व-वक्ष की गह्वरता के भीतर— 
    क्योंकि प्रेम हुआ मृत और पुरातन हर्ष का हो गया अंत— 
    रिक्तता परमानंद की जो गया, सदा को किया पलायन,
    स्वर्णदीप्त देव और स्वप्न नौका का होता न आगमन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री अरविंद | चुनिंदा कविताएँ (पृष्ठ 152)
    • रचनाकार : श्री अरविंद
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2020

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