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अनल-पवन

anal pavan

श्री अरविंद

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श्री अरविंद

अनल-पवन

श्री अरविंद

और अधिकश्री अरविंद

     

    पूरब की सुवर्णिमा से प्रवाहमान एक अनल-पवन, 
    प्रखरतम मध्याहन के समीरण-संग मेरी आत्मा पर करता उत्क्रमण।
    देवदूत के पंख, वन्यजंतु का सरपट धावन! 
    शरीर और मन आग पर, किंतु हृदय मूर्च्छापन्न।

    हे अनल, तू है मध्याहन के बल-विभव का आनेता, 
    पर कहाँ हैं भोर के कलरव और संध्या की नीरवता? 
    कहाँ है चंद्र की नीलप्रभ माध्वी मदिरा? 
    मन और प्राण पुष्पमय, पर हृदय को सहन करनी पड़ती पीड़ा

    प्राणाग्नि की रक्तिमा और मन का सुवर्ण 
    करते पृथिवी को उद्दीप्त, स्वर्गों को द्युति-शोभन, 
    पर हृदय की शुभ्रता और अरुणिमा हैं निष्प्राण। 
    अनल पवन, करो प्रयाण! मैं 'प्रेम' के लिए मौन पथों में रहूँगा प्रतीक्षमान।


    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री अरविंद | चुनिंदा कविताएँ (पृष्ठ 150)
    • रचनाकार : श्री अरविंद
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2020

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