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हवा के कहे की गाथा

hava ke kahe ki gatha

रफ़ाइल अलबर्ती

अन्य

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रफ़ाइल अलबर्ती

हवा के कहे की गाथा

रफ़ाइल अलबर्ती

और अधिकरफ़ाइल अलबर्ती

     

    अनंत यों तो केवल एक नदी का नाम भी हो सकता है
    एक बिसराया हुआ घोड़ा
    और खोए हुए कबूतर की गुटरगूँ            

    जहाँ तक उस आदमी का सवाल है
    जो अपने साथियों को छोड़ देता है
    हवा आती है उसे दूसरी बातें बताने
    उसके कान और आँख
    अन्य वस्तुओं के लिए खोल देती है

    मैंने आज अपने लोगों को छोड़ दिया
    और अकेले खोह में नदी को देखना शुरू किया
    एक घोड़े को अकेला खड़ा देखा
    अकेले खोए कबूतर की गुटरगूँ को सुना

    तब हवा नज़दीक आई
    और बातों-बातों में कछ कहने के तरीक़े से बोली :
    अनंत केवल एक नदी का नाम भी हो सकता है
    एक बिसराया हुआ घोड़ा
    और एक खोए कबूतर की गुटरगूँ

             
    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 90)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : रफ़ाइल अलबर्ती
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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