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फिर एक शाम

phir ek shaam

अपूर्वा श्रीवास्तव

अन्य

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और अधिकअपूर्वा श्रीवास्तव

    बच बचाकर एक-दूजे को ताक़ लेने भर से भी

    बची रहेगी दुनिया

    जैसे बचा रहेगा बसंत

    पृथ्वी पर

    बचे हुए अंतिम दूब तक और

    टकराती प्रतिबिंबों में एक होते रहेगें—

    दो लोग

    किसी सुनसान सड़क पर।

    जब संसार और समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है—

    प्रेम

    गंगा देती है शरण।

    अपने अपने हिस्से का मौन

    साझा कर रहे दो लोग

    बैठे हैं उसकी तट पर

    गंगा का उमड़ता जल

    प्रेमी हृदयों की ही तरंग हैं

    हवाओं की बहाव में अत्यधिक दबाव है

    देह चीर रही

    पथराई आँख

    फटे होंठ

    लेकिन एक कंधा—तटस्थ।

    केवल अनुभव से पहचाना जा सकता है

    जिया हुआ प्रेम और

    रुआँसी आँख

    शब्दों में भरे जा सकते हैं गहन-गहन अर्थ लेकिन

    अर्थों में कैसे सिमट सकेगी—

    अनुभूति?

    फिर एक शाम

    तुम्हारी हथेली पर क्या बचेगा

    अधसुलगा एक सिगरेट और

    अनसुलझे कई सवाल!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अपूर्वा श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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