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स्मृतियों के इंद्रधनुष

smritiyon ke indradhnush

श्रीविलास सिंह

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श्रीविलास सिंह

स्मृतियों के इंद्रधनुष

श्रीविलास सिंह

और अधिकश्रीविलास सिंह

    मुँडेर से उतर कर धूप

    बरांडे के दूर वाले छोर पर अटक जाती है।

    जाने क्यों

    घिर जाता है मन

    एक उदास ख़ामोशी से।

    सुगंध का एक वलय

    तैर जाता है आँखों के आगे

    यादों का इंद्रधनुष खिंच जाता है

    मन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक।

    एक बच्चा भागता है

    कटी हुई पतंग के पीछे।

    तितलियाँ-सी उड़ती हैं

    आँखों में

    लहरा उठता है

    एक आँचल गुलाबी,

    या फिर शायद धानी

    ...सुनहरा

    सबकुछ गड्डमड्ड।

    आँचल की एक कोर

    फँसी रह गई है

    मन के किसी कोने से।

    टप...

    बारिश की एक बूँद

    भिगो गई हथेली।

    घिर आया सावन यादों का।

    अपनी किताबें

    सिर के ऊपर किए

    बारिश से बचने को

    गुलमुहर तक चली आई वह लड़की।

    जब घूरते हुए उसे

    बेवक़ूफ़ों की तरह

    पूछा था मैंने कुछ ऐसे ही।

    कैफ़ेटेरिया में उस दिन

    ठंड से कुड़मुड़ाते जब वह

    पी गई थी बची हुई कॉफ़ी

    मेरे प्याले की

    अनजाने में या शायद जानबूझकर।

    और फिर बिखर गई थी

    हमारे चारों ओर

    एक सिंदूरी आभा।

    स्मृतियों के सूत्र

    खिसकने लगते हैं मुट्ठी से

    चाहे कितना कसकर पकड़ो।

    जीवन पहुँच जाता है

    कहीं से कहीं।

    मुँडेर पर की धूप

    कब की बरांडे से सरकती

    दूर चली गई है

    उदासी की एक चादर

    अपने पीछे छोड़कर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीविलास सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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