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जान काका

jaan kaka

जोर्जे दे लीमा

अन्य

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जोर्जे दे लीमा

जान काका

जोर्जे दे लीमा

और अधिकजोर्जे दे लीमा

    जान काका उखड़े पेड़ की तरह मुर्झा गए

    जान काका अपनी आख़िरी साँसे गिन रहे हैं

    जान काका नाव चलाते थे

    हल चलाते थे

    धरती से हरी वनस्पतियों की दौलत उगाते थे

    कहवा, गन्ना, कपास!

    जान काका ने धरती से हीरे निकाले थे

    ताज़े रसीले मीठे फलों वाले हीरे

    जान काका की बेटी

    मेम साहब के बच्चों को दूध पिलाती थी

    धीरे-धीरे उसका ख़ून निचुड़ गया

    वह भी सूख गई

    जान काका की चमड़ी हमेशा कोड़ों से उधड़ी रहती थी!

    जान काका की ताक़त हमेशा, हल और हँसियों की मूठ में

    लगी रहती थी

    गोरों ने जान काका की पत्नी को छीन लिया था

    बच्चों को पालने-पोसने के लिए

    जान काका का रक्त मेम साहब के उच्च रक्त में मिलता था

    जैसे भूरा गुड़ सफ़ेद दूध में घुल जाए

    मेम साहब के बच्चे जान काका को

    घोड़ा बनाते थे

    जान काका को ऐसी अनोखी कहानियाँ

    आती थीं कि लोग सुनते-सुनते रो पड़ें

    जान काका आख़िरी साँसें गिन रहे हैं

    बाहर रात इतनी काली है जैसे जान काका का चमड़ा

    आकाश के सभी तारे ग़ायब हैं

    कहीं जान काका ने जादू तो नहीं कर दिया

    जान काका जादू भी जानते थे

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 337)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : जोर्जे दे लीमा
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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