Font by Mehr Nastaliq Web

राँची से पटना : एक कथा

ranchi se patnah ek kathatmak

अंचित

अन्य

अन्य

अंचित

राँची से पटना : एक कथा

अंचित

माँ के लिए

जगहें समय बीत जाने के बाद

छोटी लगने लगती हैं।

जो विशाल लगता था,

एक कोने से दूसरे तक फैला हुआ

ऊँचे मकान, बड़ी चट्टानें, दूर तक फैले जंगल,

और जिन दिलों में मोहब्बत, लगता था…

इतने वर्षों बाद उनकी लघुता से मिलता हूँ

पहली बार। आमने-सामने।

ऐसे में

धुर्वा में थोड़ा कम है धुर्वा

(जैसे हरिसभा में कोई हरिसभा कभी था ही नहीं )

फिरायालाल एक लम्बी फ़र्लांग में नापा जा सकता है

लालपुर, शहर से दूर किसी और शहर की तरफ़ जाना नहीं रहा,

मेन रोड कोई अंतहीन जादू से भरी सड़क नहीं

क्योंकि अब वहाँ माँ से जुड़ी कोई निशानी नहीं

अपर बाज़ार, आख़िरकार, आग्रहों से और स्वाँगों से मुक्त,

अब किसी इच्छा और इतिहास से बंधा नहीं रहा।

धनुष की कमानी सी तीखी

राँची से पटना तक तनी हुई कोई अदृश्य रस्सी है

जिस पर माँ चलती रही है

अपनी बड़ी बहन की तरह, अपनी माँ की तरह,

अपने उस भाई की तरह जो आठ बरस की उम्र में दुनिया से चला गया,

अपने पिता की तरह जिसको उसका बेटा देख भी नहीं पाया

एक घर से दूसरे घर

लघुता के असंख्य उदाहरणों से टकराती

साधारण की औसत परिभाषाओं की चोट सहती

अंतरंगता में घुसपैठ की हिंसा

प्रेम के अभिनय की हिंसा

इस तरह पूरे इतिहास में

और किसकी छलनी की गई पीठ!

मुझे याद रहती है

वह रात जो माँ के साथ हमने बियाबान जंगल में गुज़ारी बहुत साल पहले

वह यात्रा जिसमें अपने बच्चों को खुद में समेटे कटिहार से पटना तक वह ट्रेन के दरवाज़े बैठी रही

वह बाढ़ जिसमें हमारी बस लगभग नदी में दह गई थी

वह लंबी कथा जिसमें बहन की बीमारी से उसके चले जाने तक

हम दोनों भाई बहन, माँ के बग़ैर खो जाते।

इसलिए

भले ही

अर्थहीनता का पर्याय परिवार बार-बार अपनी लिप्सा, अपने दंभों,

अपनी अच्छाइयों के साथ अपनी ज़िद और अपना महत्व स्थापित

करना रहे

भले ही पिता

अपनी विसंगतियों के साथ,

सबके प्रति अपने निर्द्वंद्व प्रेम के साथ

सहज नेपथ्य स्वीकारते हों,

अपर बाज़ार से सब्ज़ीबाग तक

केंद्र में सिर्फ़ एक कथात्मक है और

सिर्फ़ एक स्त्री—

माँ।

स्रोत :
  • रचनाकार : अंचित
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY