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सिमटना

simatna

द्वारिका उनियाल

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    सिमटना-एक

    बारिश में भीगी बिल्ली

    चूल्हे में पकते भात की महक और भाप से चिपटी हुई

    सिमटी रहती है किचन की खिड़की से

    और

    अलमारियों में अलग-अलग सजे हुए

    स्टील, काँच और बोन चाइना के बर्तन

    आख़िरकार सिमट ही जाते हैं किचन के सिंक पे

    सिमटना-दो

    पहाड़ के गाँव में सीढ़ी दार खेतों पे बिखरे हुए कच्चे घर

    दूर-दूर हैं लेकिन आपसी रिश्तों को सिमटा के रखते हैं

    और

    सिमट आती हैं माँ की बाँहें अपनी नन्ही को गोद में उठाकर

    और सिमट जाती है स्कूल जाती सड़क पिता के हाथों में

    सिमटना-तीन

    भू-गर्भ में कुछ इंच हर साल सिमटती है ये धरा

    ठंडे रक्त की धमनियों में सिमटती हैं कोशिकाएँ

    बारिश की बूँद में सिमट जाती है आकाश की आद्रता

    और

    काग़ज़ में आग लगाती

    मैग्निफ़ायइंग लेंस में सिमटी सूर्य की रश्मियाँ

    सिमटना-चार

    उम्र की दुपहरी में खिंचे-खिंचे से रिश्तों की परछाइयाँ

    अनजाने में सिमट जाती हैं

    और

    जीवन के अंतिम पड़ाव में

    मणिकर्णिका के घाट पे आत्माहीन अपरिचित चिताएँ

    जलती हैं सिमट-सिमट के

    सिमटना नितांत अकेले विस्तृत जीवन की एक परिधि है

    और

    सिमटना प्रेम का सबसे सुंदर विस्तार भी

    स्रोत :
    • रचनाकार : द्वारिका उनियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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