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शहर का नदी हो जाना

shahr ka nadi ho jana

यतीश कुमार

अन्य

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यतीश कुमार

शहर का नदी हो जाना

यतीश कुमार

और अधिकयतीश कुमार

    छोटी-बड़ी नदियाँ

    चेहरों के साथ बहती रही हैं

    शहर के अंदर

    हर गली-क़स्बे में बस बही जा रही हैं

    शहर का हर चौराहा

    हो रहा है संगम में तब्दील

    एक होड़-सी लगी है

    हर बहती नदी में डुबकी लगाने की

    और विलय होने की उस नदी में

    जिसमें सबसे ज़्यादा उफान हो

    यहाँ पोखर भी हैं ढेर सारे

    जैसे-तैसे ख़ुद को बचाए

    कुछ है भाप की तरह

    स्थायी पता नहीं जिनका

    बस काग़ज़ी तमन्नाओं की नाव खेते

    ओस भर आशा मन में लिए

    तलाश सिर्फ़ 'एक अंगुल ज़मीन' की

    सारी नदियाँ गुम होती जा रही हैं

    मंदिर और मस्जिद में

    और बढ़ रहे हैं कंक्रीट के इबादतगाह

    मूर्तिकारों से भरा यह शहर

    मिट्टी से गढ़ सकता है

    असंख्य मूर्तियाँ

    पर गढ़ नहीं पा रहा

    ख़ुद के लिए छोटा-सा घर

    इस शहर में आवेग है

    ज़बान है, प्रलाप है

    आज़ादी है और अभिव्यक्ति भी

    फ़ुटपाथ बोलता है

    दीवारें बोलती हैं

    हर एक चीज़ बोलती है

    नहीं बोलती हैं

    तो इस शहर की आँखें

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतीश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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