शाम 6 बजे के उद्भव पर

shaam 6 baje ke udbhav par

मिरोस्लाव होलुब

मिरोस्लाव होलुब

शाम 6 बजे के उद्भव पर

मिरोस्लाव होलुब

और अधिकमिरोस्लाव होलुब


     
    मनुष्यों के नाम
    सरल होते हैं नामों से
    सूर्य की जमुहाई के बाद, दिन
    उछाल दिया गया घरों के बीच
    चलते हैं हम, अपने प्रेम को अपने पीछे घसीटते हुए
    एक बड़े मुँह-झौंसे कुत्ते की तरह।
    लेकिन कितनी ज़िंदगियाँ जा सकी हैं बचाई,
    मुँह-से-मुँह में साँस फूँककर?
    बस इतना ही, वह सीलबंद रिक्त आडंबर?
    बातचीत वह हिलसा मछलियों की बिना तारीख़ वाली टिन में?
    निश्चय ही। और हम पकड़ते हैं अपने काँटे को
    बाएँ से और रख देते हैं हड्डियाँ प्लेट की
    बग़ल में, अनंतकाल के लिए।
    तुम्हारी आँखें, ज़रूर ही, हैं नियॉन बत्तियाँ,
    और जिधर भी तुम देखती हो, एक
    जलती हुई इबारत उभर आती है दीवार पर।
    नहीं हैं कोई शब्द। कभी थे भी नहीं
    चबाने के वक़्त। नियति की देहरी पर
    चुप है कविता, अपनी ही कड़वाहट से रूँधी हुई।
    भाग्यवश मैं मुश्किल से समझ
    पाया तुम्हें कभी।
    हम लिखते हैं एक-दूसरे के ऊपर छुरी से—
    जैसे कि चीनी कवि करता हो रेखांकन ब्रश से।
    जम जाता है कोई रक्त जल्दी,
    कुछ बहता है, बहता ही रहता है।
    परिमाण चीज़ों का चलता है पता
    धाव की गहराई से।
    हम लाल बत्ती पर पार करते हैं रास्ता। क्योंकि खेल
    है बिना नियमों का, और कई बरस पहले
    हमारे शतरंजी चौराहों को कर दिया
    उन्होंने छिन्न-भिन्न,
    इसलिए और कुछ नहीं राजाओं के ख़र्राटे सुन पड़ते हैं,
    और चिल्लाहट प्यादों की, हिनहिनाहट घोड़ों की
    और इन सब में बँधे हैं हम चुप्पी से।
    लेकिन जब चूमता हूँ मैं तुम्हें
    तुम्हारी जीभ देती है स्वाद,
    दसवें ग्रह का, बन जाता
    अपने आप जो।
    और बस इतना ही, पंजा वह अँधेरे का?
     
    नींद की ये आत्महत्याएँ, जिससे हम
    जागकर उठते हैं ठीक पत्थर के नीचे?
    और बस इतना ही, परीक्षा वह
    कंकाल अवशेषों की?
    तुम्हारी चाल निश्चय ही है राजसी,
    आतंकित करते उन्नत उरोजों के बारे में शक नहीं।
    तुम चलती हो और पता नहीं चलता चलने का।
    उम्मीद से जीते हम। निश्चय ही।
    इसके परजीवी कुतरते हैं सत्व भेजे का
    कभी-कभी वह भी नहीं।
     
    और जो छह बज गए हैं
    आज के। ठीक वैसे जैसे बजे थे कल
    और फिर कल बजेंगे।
     
     
    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 115)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : मिरोस्लाव होलुब
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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