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एकांत में वह

ekaant mein wo

कंचन जायसवाल

कंचन जायसवाल

एकांत में वह

कंचन जायसवाल

पुरुष की नंगी छाती पर सिर टिकाए

वह सुन रही है धड़कन

धुन बेसुरी है

जहाँ-जहाँ वह हाथ रखती है

कोई हथेली पहले ही अपने अक्स छोड़ चुकी है

मोगरे जैसी देह-सुगंध लिए

वह भटकती है देर तक

ठोड़ी टिकाए पुरुष के कंधे पर

वह दृश्य के पार देखती है

वहाँ पहले से बैठी स्त्री

अपनी देह पर चंदन मल रही है

वह घबराकर पीछे हटती है

रंगीन तितलियाँ भय के भ्रम में

उसकी जाँघ से लोप हो जाती हैं

उसके भीतर की तरलता सूखने लगती है

वह देर तक मथती है अपनी देह

और अपने एकांत में वह सिसकती है।

स्रोत :
  • रचनाकार : कंचन जायसवाल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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