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प्रेम रंजन अनिमेष

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और अधिकप्रेम रंजन अनिमेष

    रखता हूँ बढ़ई के कुछ औज़ार

    लोहार का घन

    कुछ नहीं का सब कुछ

    जानने वाला नहीं

    तो सबका जानना होगा कुछ-कुछ

    राह में ठीक कर लेता लगकर

    अपने से चक्का रथ का

    ठोंक-पीट लेता देह की मशीन आप

    छा बना लेता घर ख़ुद

    हर बारिश के पहले बाद

    रखता हूँ मरम्मतियों के जोड़

    क़ुली का माथा

    धुनिए की धुन

    जिन-जिनके ये हुनर

    सबका आदर

    सबकी बाक़ी है गुरु दक्षिणा

    सबसे सीखा आँख बचाकर

    चरवाहों के चैन और हाटवालों की हड़बड़ी के बीच

    सोचता हूँ छू सकूँ जीवन को जितनी कोरों से

    और फिर यह चाह भर नहीं

    यही शर्त

    ज़िंदा रहने की

    इत्ते से वक़्त और बित्ते से आकाश में

    मारने या मरने के लिए काफ़ी है

    एक चोट एक धार

    जीने के लिए चाहिए सारे के सारे औज़ार!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रेम रंजन अनिमेष
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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