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सत्य

saty

अनुवाद : एम. जी. वेंकटकृष्णन

तिरुवल्लुवर

अन्य

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और अधिकतिरुवल्लुवर

    291

    परिभाषा है सत्य की, वचन विनिर्गत हानि।

    सत्य-कथन से अल्प भी हो किसी को ग्लानि॥

    292

    मिथ्या-भाषण यदि करे, दोषरहित कल्याण।

    तो यह मिथ्या-कथन भी, मानो सत्य समान॥

    293

    निज मन समझे जब स्वयं, झूठ बोलें आप।

    बोलें तो फिर आप को, निज मन दे संताप॥

    294

    मन से सत्याचरण का, जो करता अभ्यास।

    जग के सब के हृदय में, करता है वह वास॥

    295

    दान-पुण्य तप-कर्म भी, करते हैं जो लोग।

    उनसे बढ़ हैं, हृदय से, सच बोलें जो लोग॥

    296

    मिथ्या-भाषण त्याग सम, रहा कीर्ति-विकास।

    उससे सारा धर्म-फल, पाए बिना प्रयास॥

    297

    सत्य-धर्म का आचरण, सत्य-धर्म ही मान।

    अन्य धर्म सब त्यागना, अच्छा ही है जान॥

    298

    बाह्‍य-शुद्धता देह को, देता ही है तोय।

    अन्तःकरण-विशुद्धता, प्रकट सत्य से जोंय॥

    299

    दीपक सब दीपक नहीं, जिनसे हो तम-नाश।

    सत्य-दीप ही दीप है, पावें साधु प्रकाश॥

    300

    हमने अनुसन्धान से, जितने पाए तत्व।

    उनमें कोई सत्य सम, पाता नहीं महत्व॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : तिरुक्कुरल : भाग 1 - धर्म-कांड
    • रचनाकार : तिरुवल्लुवर

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