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संन्यासी-महिमा

sanyasi mahima

अनुवाद : एम. जी. वेंकटकृष्णन

तिरुवल्लुवर

अन्य

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तिरुवल्लुवर

संन्यासी-महिमा

तिरुवल्लुवर

और अधिकतिरुवल्लुवर

    21

    सदाचार संपन्न जो, यदि यति हों वे श्रेष्ठ।

    धर्मशास्त्र सब मानते, उनकी महिमा श्रेष्ठ॥

    22

    यति-महिमा को आँकने, यदि हो कोई यत्न।

    जग में मृत-जन-गणन सम, होता है वह यत्न॥

    23

    जन्म-मोक्ष के ज्ञान से, ग्रहण किया संन्यास।

    उनकी महिमा का बहुत, जग में रहा प्रकाश॥

    24

    अंकुश से दृढ़ ज्ञान के, इंद्रिय राखे आप।

    ज्ञानी वह वर लोक का, बीज बनेगा आप॥

    25

    जो है इंद्रिय-निग्रही, उसकी शक्ति अथाह।

    स्वर्गाधीश्वर इन्द्र ही, इसका रहा गवाह॥

    26

    करते दुष्कर कर्म हैं, जो हैं साधु महान।

    दुष्कर जो नहिं कर सके, अधम लोक वे जान॥

    27

    स्पर्श रूप रस गन्ध औ', शब्द मिला कर पंच।

    समझे इनके तत्व जो, समझे वही प्रपंच॥

    28

    भाषी वचन अमोध की, जो है महिमा सिद्ध।

    गूढ़ मंत्र उनके कहे, जग में करें प्रसिद्ध॥

    29

    सद्गुण रूपी अचल पर, जो हैं चढ़े सुजान।

    उनके क्षण का क्रोध भी, सहना दुष्कर जान॥

    30

    करते हैं सब जीव से, करुणामय व्यवहार।

    कहलाते हैं तो तभी, साधु दया-आगार॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : तिरुक्कुरल: भाग 1 - धर्म-कांड
    • रचनाकार : तिरुवल्लुवर

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