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समय के आईने में

samay ke aine mein

सविता सिंह

अन्य

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सविता सिंह

समय के आईने में

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    चली जाती हूँ

    आँधी-सी उस हवा में ऐसे

    जैसे जानती हूँ उसकी भीतरी अहिंसा

    जानती हूँ वह आकर थमेगी मुझमें ही

    भर देगी जाने कैसी-कैसी अतृप्तियों से फिर

    अधीर होने पर सुला देगी

    मेरे ही सपनों की बाँहों में आख़िर

    चली जाती हूँ

    उन घाटियों में भटकने

    जहाँ क़तई उम्मीद नहीं है उससे मिलने की

    मेरी कल्पना ने जिसे चुना है

    जाती हूँ लौटने हर बार नए सिरे से

    उन्हीं अक्षरों के बीच

    जिनसे मिलती-जुलती हूँ

    मिलती-जुलती हैं जो कितनी उन बिंबों से फिर

    जिनके अर्थ छिपे रहते हैं

    उजागर होकर भी

    तभी तो समा जाती हैं निःस्वर

    समय के आईने में हर रात

    जहाँ संचित है वह आलिंगन

    या कि बिंब उसका

    जिसमें है वह

    और उसकी उत्तप्त बाँहें

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्वप्न समय (पृष्ठ 53)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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