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कपाल-मोक्ष

kapal-moksh

अनुवाद : शशी मुदीराज

श्रीरंगम् नारायण बाबू

अन्य

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और अधिकश्रीरंगम् नारायण बाबू

    निर्विकल्प समाधि रत

    वेद-सन्निहित,

    निमीसिताक्ष

    आदिशंकर की

    तप-समाधि में

    ओंकार ही हुँकार भर उठा

    डोल उठे

    चराचर

    डोल उठे पंच तत्व

    काजल लगी आँख- बनकर

    सूरज ही

    उगल उठा अँधियारा

    आकाश गंगा में

    लहरों का ज़हर

    उफ़न आया

    निस्तेज हो गई

    शेषनाग के शीष

    मणियों की कांति

    नहीं रहे—

    फूलों के उपवन

    आएँगे नहीं

    जब कभी वसंत

    राख हो गए

    सारी दुनिया के

    तपस्वी जन

    अनंत कोटि

    जीव-योनियाँ

    कर उठीं हाहाकार,

    हर ओम। हर-हर कह

    पाहि। पाहि। कह

    हुए प्रणमित।

    आर्द्र हो गया

    अंतरंग उस महादेव का

    आँख खोल

    भूख, भूख कह

    हाथ पसारा

    भिक्षा-पात्र के लिए

    किंतु कहाँ—

    उग्र तप के ताप से

    हो गया था राख वह

    ब्रह्म-कपाल।

    किट-किटा कर

    दाँत पीसे नटराज ने।

    भूत और पिशाच

    चिल्ला उठे

    काँपे चारण-भाट

    भय से कंपित

    नन्दी हुँकार उठा।

    और, भूमि पर

    क़ब्रिस्तानों में मुसलमानों के

    समाधियों में ईसाइयों के

    हिंदुओं के श्मशानों में

    अट्टहास कर उठे कपाल

    पुलकित हो उठे हाड़

    झन-झन कर उठे कंकाल।

    डोल उठा श्वेत शैल के शिखरांचल का

    स्वर्णकलश

    स्वाहापति के स्वर्ण-गर्भ में

    उठी थरथरी, जगी पीर

    गंगा के वक्ष में

    उफन उठा क्षीर-ज्वार

    सिंधु-गर्भ में, गंगा-तल में

    लवण-सागर की गहराई में

    छिपी हुई नेत्राग्नि ने

    रूप धरा मानव का

    दहका दो मिट्टी सब

    धुँधुआ दिया गगन

    जन्म लिया ज्वालाओं में।

    पला-बढ़ा ज्वाला में

    ध्वस्त हुआ ज्वालाओं में

    अग्निवीणा बन, भग्नकंठ हो

    भग्नगीत बन

    तारक मंत्र की परमज्योति-सा

    वीर शैव वह।

    एक कपाल—

    वेग से गिरा

    हाथ में रुद्र के

    भारत वीर का!

    चीत्कार कर उठे नीलकंठ

    नयन तीसरा

    हो स्पंदित

    अंड-पिंड ब्रह्मांड निखिल में—

    कर उठे तांडव-नर्तन

    झरे हर्ष के आँसू झर-झर।

    शेष-फण की कोमल सेज़ पर

    करवट ली धरती ने

    मरु-भूमि फूली।

    कितनों ने जन्म लिया,

    कितनों का हुआ मरण

    मिलता क्या सबको यह

    हलाहल-मय हस्तस्पर्श।

    अधरों का चुंबन

    कपाल-मोक्ष।

    कपाल-मोक्ष।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : श्रीरंगम् नारायण बाबू
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

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