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सैलानी

sailani

प्रयागनारायण त्रिपाठी

अन्य

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और अधिकप्रयागनारायण त्रिपाठी

    कौन सागरों, कौन तटों, किन चट्टानों, किन द्वीपों में

    इस जहाज़ को जाना है

    मैं नहीं जानता;

    क्योंकि रह, अपना तो हरदम

    केवल मुसाफ़िरी बाना है।

    यदि जहाज़ यह

    कई जलों पर चिह्नित करता जुटती-मिटती पथ-रेखाएँ

    कई-कई ज्वारों को सह कर राह बनाता

    आज यहाँ बह कर आया है

    यदि यह कर टकराया है ऐसे गीले, शरमीले तट से,

    यदि इसने लंगर डाला है आज यहाँ पर

    यदि इसके स्वागत में क्षण भर दीप मनोहर मुस्काया है

    तो कृतज्ञ ही हो सकता हूँ मैं उसके प्रति

    शिरोधार्य ही कर सकता हूँ स्वागत की मुस्कान क्षणिक यह।

    क्या दे सकता हूँ बदले में!

    सैलानी हूँ : वणिक नहीं हूँ।

    यदि यह जाकर भिड़ जाएगा

    कल परदेशी, काली-भूरी चट्टानों से

    यदि यह अड़ जाएगा उथले, अनजाने पानी में धँस कर

    यदि यह उज्ज्वल हिम-खंडों की गति को

    वेधक समीपता को

    कल पहचान नहीं पाएगा

    यदि टकराएगा उससे

    टूटेगा

    डूबेगा

    तो भी क्या?

    उस कल के आने पर वह सब कुछ सह लूँगा

    और अधिक क्या कह सकता हूँ।

    सैलानी हूँ : बधिक नहीं हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तीसरा सप्तक (पृष्ठ 33)
    • संपादक : अज्ञेय
    • रचनाकार : प्रयागनारायण त्रिपाठी
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2013

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