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स्वीकृति

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अलेक्सांद्र ब्लोक

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और अधिकअलेक्सांद्र ब्लोक

    सीमाहीन अंतहीन वसंत—

    अनंत और असीम सपने!

    मैं तुम्हें जानता हूँ, मेरे जीवन! मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ

    और कवच खनखनाकर तुम्हारा स्वागत करता हूँ।

    मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ, असफलते!

    सफलते, मैं तुम्हारा अभिवादन करता हूँ

    रुदन के दुश्चक्र में

    हास के रहस्य-लोक में कुछ भी लज्जाजनक नहीं होता!

    मैं स्वीकार करता हूँ निद्राहीन तर्कों को

    खिड़कियों के अँधेरे परदों में छिपी हुई सुबह को,

    भरने दो वसंत को जलन और ख़ुमारी

    मेरी धूँ-धूँ करती आँखों में!

    मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ ऊजड़ गाँवो!

    और तुम्हें भी, धरती के शहरों के कुँओ!

    आसमान के उजले विस्तार,

    दास मज़दूरों की यंत्रणा!

    मैं तुम्हें देहरी पर भेंटता हूँ

    आँधी के लहराते घुँघराले बालों के साथ

    अपने ठंडे और भिंचे हुए ओठों पर

    देवता का अनबूझा नाम लेकर...

    इस अनिष्टकर मिलन में

    मैं अपना कवच कभी नहीं उतारूँगा

    तुम अपने कंधे कभी उघाड़ोगे

    लेकिन हम पर छाया रहेगा एक नशीला सपना।

    मैं देख रहा हूँ, नाप रहा हूँ बैर को,

    घृणा से, गाली से, प्यार से

    यंत्रणाओं की सौगंध, मृत्यु की सौगंध—मैं जानता हूँ—

    फिर भी मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 33)
    • संपादक : नामवर सिंह
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र ब्लोक
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1978

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