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सड़कें

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रवि यादव

अन्य

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रवि यादव

सड़कें

रवि यादव

और अधिकरवि यादव

    एक ही शहर में रहते

    कितने दूर रहें हम

    दूर चाँद को देख तुम्हें याद करता हूँ

    जबकि हम

    एक ही पृथ्वी के लोग हैं।

    सोचता हूँ

    रास्ते रुके हुए भी कैसे चलते हैं!

    चलना तो ठीक दौड़ते रहते हैं।

    मैं भी कितना भुलक्कड़ हूँ।

    भला जब नहीं चाहता हूँ कुछ याद करना

    तो वो भी तो आते रहते हैं याद बेतहाशा।

    भूलने की क्रिया में चिपकी रह जाती हैं

    याद करने की क्रियाएँ

    किसी ससंजक बल की भाँति।

    सड़कें इतनी लंबी हैं

    पहुँचती हैं कोने-कोने

    चलती, दौड़ती, भागती रहती हैं दिनों रात

    फिर भला ये सड़कें मुझे 

    क्यों नहीं पहुँचा पाती तुम्हारे पास

    स्रोत :
    • रचनाकार : रवि यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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