रेगिस्तान से गुज़रती एक रेलगाड़ी
registan se guzarti ek relgaDi
अशरफ़ अबूल-याज़िद
Ashraf Aboul-Yazid

रेगिस्तान से गुज़रती एक रेलगाड़ी
registan se guzarti ek relgaDi
Ashraf Aboul-Yazid
अशरफ़ अबूल-याज़िद
और अधिकअशरफ़ अबूल-याज़िद
ये गाँव एक रेलगाड़ी जैसे दिखते हैं
जो वातानुकूलित ताबूतों को
एक पूँछ की तरह खींचकर ले जा रही है
वे दिखते हैं एक औरत जैसे
जिसकी धूल सनी छाती सूरज से जल गई है
जिसके शरीर को सूखे बग़ीचों से पोत दिया गया है
एक रेल जो रोती है
हर दो स्टेशनों के बीच
जहाँ पैदल चलने के रास्ते
मृगतृष्णा और छल से बने हैं
इसके पेट में हम संघर्ष करते हैं
अपने नक़ली अंगों को सुंदर बनाने के लिए
अपनी हार से लड़ते हैं
जो कुछ भी बचा है
हमारी डरी हुई देहों में
मनमुटाव के ड्रैगन हमारे थैलों में
उस पर पेशाब कर रहे हैं
हम उन मुल्कों का अपमान कर रहे हैं
और एक हज़ार एक
तौलियों में थूक रहे हैं
लेकिन,
हम इस रेल को छोड़ नहीं रहे
जबकि हम इसे रोक सकते हैं।
- रचनाकार : अशरफ़ अबूल-याज़िद
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अनुवादक द्वारा चयनित
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