रेफ़ की तरह

ref ki tarah

अनिल त्रिपाठी

अनिल त्रिपाठी

रेफ़ की तरह

अनिल त्रिपाठी

हमारे कमरों में जिनके लिए जगह नहीं है

जिनसे बिगड़ जाता है कमरे का व्याकरण

उन्होंने अपने लिए

अदृश्य जगहें खोज ली हैं।

हम चाहते हैं वे ऐसी जगह रखी जाएँ

जिनसे कम से कम

घर आए मेहमानों का दीदार हो।

वे हर्फ़ों की दुनियाँ में रेफ़ की तरह हैं

जो कभी-कभार ही आते हैं काम

लेकिन वे होते हैं विकल्पहीन

जिनके बिना शब्द हकलाने लगते हैं।

कहने को तो वस्तुएँ हैं

जो प्रयोग की आकांक्षा में

डटी हैं किसी कोने या टाँड़ में

या सर्वसमावेशी स्टोर में…

लेकिन हम उन रिश्तों को क्या कहें

जो सामान की तरह किसी कोने में डाल दिए गए हैं

मसलन शहर में बूढ़े।

जो कि दरअसल पिता ही हैं

या कि माँ

जिनके लिए शहर के मकानों में

सबसे कम बची है जगह।

आख़िर कैसा है यह समय

कि अपना ही बेगाना होकर

शामिल नहीं है

हमारी अपनी दुनिया में।

स्रोत :
  • रचनाकार : अनिल त्रिपाठी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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